________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्रं : शतकं 18:: उद्देशकः 1 ] [ 573 जाव विहरति 2 // सूत्रं 611 // 17-13 // सुवनकुमारा णं भंते ! सन्चे समाहारा 1 / एवं चेव सेवं भंते ! 2 जाव विहरति 2 // सूत्रं 612 // // 17-14 // विज्जुकुमारा णं भंते ! सव्वे समाहारा एवं चेव 1 / सेवं भंते ! 2 जाव विहरति 2 // सूत्रं 613 // 17-15 // वायुकुमारा णं भते ! सब्वे समाहारा एवं चेव 1 / सेवं भंते ! 2 जाव विहरति 2 // सूत्रं 614 // 17-16 // अग्गिकुमारा भंणं ते ! सवे. समाहारा एवं चेव 1 / सेवं भंते ! 2 जाव विहरति 2 // सूत्रं 615 // 17-17 // सत्तरसमं सयं समत्तं // // इति सप्तदशमं शतकम् // 17 // // अथ अष्टादशमशतके प्रथमाख्य-प्रथमोद्देशकः // पढमे 1 विसाह 2 मार्यदिए य 3 पाणाइवाय 4 असुरे य 5 / गुल 6 केवलि 7 अणगारे 8 भविए 1 तह सोमिलटारसे 10 // 1 // (जीवाहारग भव सन्नि-लेसा-दिट्ठी य संजयकसाए / णाणे जोगुवोगे वेए य सरीरपजत्ती // 2 // ) तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वयासी-जीवे णं भते ! जीवभावेणं किं पढमे अपढमे?, गोयमा ! नो पढमे अपढमे, एवं नेरइए जाव वेमाणिया 1 / सिद्धे णं भंते ! सिद्धभावेणं किं पढमे अपढमे ?, गोयमा ! पढमे नो अपढमे 2 / जीवा णं भंते ! जीवभावेणं किं पढमा अपढमा ?, गोयमा ! नो पढमा अपढमा, एवं जाव वेमाणिया 1, 3 / सिद्धा णं पुच्छा, गोयमा ! पढमा नो अपढमा 4 / श्रहारए णं भंते ! जीवे श्राहारभावेणं किं पढमे अपढमे ?, गोयमा ! नो पढमे अपढमे, एवं जाव वेमाणिए, पोहत्तिए एवं चेव 5 / अणाहारए णं भंते ! जीवे अणाहारभावेणं पुच्छा, गोयमा ! सिय पढमे सिय अपढमे 6 / नेरइए गां भंते ! एवं नेरतिए