________________ 574 / [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / तृतीयो विभाग जाव वेमाणिए नो पढमे अपढमे, सिद्धे पढमे नो गपढमे 7 / श्रणाहारगा णं भंते! जीवा प्रणाहारभावेणं पुच्छा, गोयमा ! पढमावि अपढमावि, नेरड्या जाव वैमाणिया णो पढमा अपढमा, सिद्धा पढमा नो अपढमा एक के पुच्छा भाणियव्वा 2, 8 / भवसिद्धीए एगत्तपुहुत्तेणं जहा थाहारए, एवं अभवसिद्धीएवि१। नोभवसिद्धीयनोत्रभवसिद्धीएणं भंते जीवे नोभवसिद्धीय-नोभवसिद्धीयभावेणं पुच्छा, गोयमा ! पढमे नो अपढमे 10 / णोभवसिद्धीनोयभवसिद्धीया णं भते ! सिद्धा नोभवसिद्धी-नोत्रभवसिद्धीयभावेणं, एवं चेव पुहुत्तेणवि दोराहवि 11 / सन्नी णं भंते ! जीवे सन्नीभावेणं किं पढमे पुच्छा, गोयमा! नो पढमे अपढमे, एवं विगलिंदियवज्जं जाव वेमाणिए, एवं पुहुत्तेणवि 3, 12 / असनी एवं चेव एगत्तपुहुत्तेणं नवरं जाव वाणमंतरा, नोसन्नीनोग्रसन्नी जीवे मणुस्से सिद्धे पढमे नो अपढमे, एवं पुहूत्तेणवि 4, 13 / सलेसे णं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! जहा थाहारए एवं पुहुत्तेणवि कराहलेस्सा जाव सुकलेस्सा एवं चेव नवरं जस्स जा लेसा अत्थि 14 / अलेसे णं जीवमणुस्ससिद्धे जहा नोसन्नीनोग्रसन्नी 5, 15 / सम्मदिट्ठीए णं भंते ! जीवे सम्मदिट्ठीभावेणं किं पढमे पुच्छा, गोयमा ! सिय पढमे सिय अपढमे एवं एगिदियवज्जं जाव वेमाणिए 16 / सिद्धे पढमे नो अपढमे, पुहुत्तिया जीवा पढमावि अपढमावि, एवं जाव वेमाणिया, सिद्धा पढमा नो अपढमा 17 / मिच्छादिट्ठीए एगत्तयुहुत्तेणं जहा थाहारगा, सम्मामिच्छादिट्ठी एगत्तपुहुत्तेणं जहा सम्मदिट्ठी, नवरं जस्स अस्थि सम्मामिच्छत्तं 6, 18 | संजए जीवे मणुस्से य एगत्तपुहुत्तेण जहा सम्मदिट्ठी असंजए जहा श्राहारए, संजयासंजए जीवे पंचिंदिय-तिरिक्खजोणियमणुस्सा एगत्तपुहुत्तेणं जहा सम्मदिट्ठी नोसंजए-नोअस्संजए-नोसंजयासंजए जीवे सिद्धे य एगत्तपुहुत्तेणं पढमे नो अपढमे 7, 11 / सकसायी कोहकसायी जाव लोभकसायी एए एगत्तपुडुत्तेणं जहा थाहारए, अफसायी जीवे सिय पढमे सिय अपढमे, एवं मणुस्सेवि