________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्रं : शतकं 15 :: उद्देशकः 1] [571 पुढवीए पुढवीकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते ! किं पुब्धि सेसं तं चेव जहा रयणप्पभापुढविकाइए सव्वकप्पेसु जाव ईसिपभाराए ताव उववाइयो एवं सोहम्मपुढविकाइनोवि सत्तासुवि पुढवीसु उववाएयव्वो जाव अहेसत्तमाए 1 / एवं जहा सोहम्मपुढविकाइनो सव्वपुढवीसु उववाइयो एवं जाव ईसिपब्भारापुढविकाइयो सव्वपुढवीसु उववाएयव्वो जाव अहेसत्तमाए 2 / सेवं भंते ! 2 त्ति जाव विहरइ 3 // सूत्र 605 // 17-7 // // अथ सप्तदशमशतके अप्कायाख्यौ अष्टमनवमोह शकौ // अाउकाइए ण भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए समोहए 2 जे भविए सोहम्मे कप्पे पाउकाइयत्ताए उववजित्तए, एवं जहा पुढविकाइयो तहा पाउकाइग्रोवि सव्वकप्पेसु जाव ईसिपञ्भाराए तहेव उववाएयव्यो, एवं जहा रयणप्पभागाउकाइयो उववाइयो तहा जाव अहेसत्तमापुढविश्राउकाइयो उववाएयव्यो जाव ईसिपब्भाराए 1 / सेवं भंते ! 2 त्ति जाव विहरइ 3 // सूत्र 606 // 17-8 // श्राउकाइए णं भंते ! सोहम्मे कप्पेसमोहए समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणोदधिवलएसु बाउकाइयत्ताए उववजिनए से णं भंते ! सेसं तं चेव एवं जाव अहेसत्तमाए जहा सोहम्मयाउकाइयो, एवं जाव ईसिपभाराबाउकाइयो जाव अहेसत्तमाए उववाएयवो 1 / सेवं भंते ! 2 ति जाव विहरइ 2 // सूत्रं 607 // 17-1 // // अथ सप्तदशमशतके वायुकाख्य-दशमेकादशोद्देशकौ // वाउकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए जाव जे भविए सोहम्मे कप्पे वाउकाइयत्ताए उववजित्तए से णं जहा पुढविकाइयो तहा वाउकाइश्रोवि नवरं वाउकाइयाणं चत्तारि समुग्घाया पन्नत्ता, तंजहा-वेदणासमुग्घाए जाव वेउब्वियसमुग्घाए, मारणंतियसमुग्घाएणं समोहणमाणे देसेण वा