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________________ 568 ) .. [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / तृतीयो विभागः चलणावि 8 // सूत्रं 511 // अंह भंते ! संवेगे निव्वेए गुरुसाहम्मियसुस्सूसणया 3 बालोयणया निंदणया गरहणया 6 खमावणया विउसमणया सुयसहायया भावे अप्पडिबद्धया विणिवट्टणया विवित्तसयणासणसेवणया 11 सोइंदियसंवरे जाव फासिदियसंवरे 16 जोगपञ्चवखाणे सरीरपञ्चक्खाणे कसायपञ्चक्खाणे संभोगपञ्चक्खाणे उवहिपञ्चवखाणे भत्तपञ्चक्खाणे 22 खमा विरागया 24 भावसच्चे जोगसच्चे करणसच्चे 27 मणसमराणाह(समाधा)रणया वयसमन्नाहरणया कायसमन्नाहरणया 30 कोहविवेगे जाव मिच्छादसणसल्लविवेगे 43 णाणसंपन्नया दंसणसंपन्नया चरित्तसंपन्नया 46 वेदणअहियासणया मारणंतियअहियासणया 48, 1 / एएणं भते ! पया किंपज्जवसाणफला पराणत्ता ?, समणाउसो ! गोयमा ! संवेगे निव्वेगे जाव मारणंतियअहियासणया एए णं सिद्धि-पज्जवसाणफला पन्नत्ता, समणाउसो ! 2 / सेवं भंते ! 2 जाव विहरति 3 // सूत्रं 600 / / // इति सप्तदशमशतके तृतीय उद्देशकः // 17-3 // . // अथ सप्तदशमशतके क्रियाख्य-चतुर्थोद्देशकः // तेणं काले णं 2 रायगिहे नगरे जाप एवं वयासी-ग्रंथि णं भंते ! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कजइ ?, हंता अस्थि 1 / सा भंते ! किं पुट्ठा कजइ अपुट्ठा कजइ ?, गोयमा ! पुट्ठा कजइ नो अपुट्ठा कजइ 2 / एवं जहा पढमसए छठ्ठद्दे सए जाव नो श्रणाणुपुस्विकडाति वत्तव्वं सिया, एवं जाव वेमाणियाणं, नवरं जीवाणं एगिदियाण य निव्वाघाएणं छदिसिं वाघायं पडुच्च सिय तिदिसि सिय चउदिसि सिय पंचदिसि सेसाणं नियम छदिसि 3 / अस्थि णं भंते ! जीवाणं मुसावाएणं किरिया कजइ ?, हंता अत्थि 4 / सा भंते ! किं पुट्ठा कन्जइ जहा पाणाइवाएणं दंडगो एवं मुसावाएणवि, एवं अदिन्नादाणेणवि मेहुणेणवि परिग्गहेणवि, एवं एए पंच
SR No.004364
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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