________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्रं : शतकं 14 :: उद्देशकः 2 ) [ 563 6 // सूत्रं 511 // कति णं भंते ! सरीरगा पराणत्ता ?, गोयमा ! पंच सरीरगा पन्नत्ता, तंजहा-पोरालिय जाव कम्मए 1 / कति णं भंते ! इंदिया पत्नत्ता ?, गोयमा ! पंच इंदिया पन्नत्ता, तंजहा-सोइंदिए जाव फासिदिए 2 / कतिविहे णं भंते ! जोए पन्नत्ते ?, गोयमा ! तिविहे जोए पन्नत्ते, तंजहा-मणजोए वयजोए कायजोए 3 / जीवे णं भंते ! थोरालियसरीरं निव्वत्तेमाणे कतिकिरिए ?, गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए, एवं पुढविकाइएवि एवं जाव मणुस्से 4 / जीवा णं भंते ! श्रोरालियसरीरं निव्वत्तेमाणा कतिकिरिया ?, गोयमा! तिकिरियावि चउकिरियावि पंचकिरियावि 5 / एवं पुढविकाइया एवं जाव मणुस्सा, एवं वेउब्वियसरीरेणवि दो दंडगा नवरं जस्स अत्थि वेउब्वियं एवं जाव कम्मगसरीरं 6 / एवं सोइंदियं फासिदियं, एवं मणजोगं वयजोगं कायजोगं जस्स जं अस्थि तं भाणियब्वं, एए एगत्तपुहुत्तेणं छब्बीसं दंडगा 7 // सूत्रं 512 // कतिविहे णं भंते ! भावे पराणते ?, गोयमा ! छविहे भावे पन्नत्ते, तंजहा-उदइए उपसमिए जाव सन्निवाइए 1 / से किंतं उदइए?, उदइए भावे दुविहे पराणत्ते, तंजहा-उदइए उदयनिप्पन्ने य 2 / एवं एएणं अभिलावेणं जहा अणुयोगदारे छन्नामं तहेव निरवसेसं भाणियव्वं जाव से तं सन्निवाइए भावे 3 / सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति जाव विहरइ 4 // सूत्रं 513 // // इति सप्तदशमशतके प्रथम उद्देशकः // 17-1 // // अथ सप्तदशमशतके संयताख्य-द्वितीयोई शकः // से नूणं भंते ! संयत-विरत-पडिहय-पञ्चक्खाय-पावकम्मे धम्मे ठिए अस्संजय-अविरय-अपडिड्य-पच्चवखाय-पावकम्मे अधम्मे ठिते संजयासंजय धम्माधम्मे ठिते ?, हंता गोयमा ! संजयविरय जाव धम्माधम्मे ठिए 1 / एएसि णं भंते ! धम्मंसि वा अहम्मंसि वा धम्माधम्मंसि वा चकिया केइ