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________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्र :: शतकं 15-16 :: उद्देशकः 1 ] [ 539 दढप्पइनवत्तव्वया सच्चेव वत्तव्वया निरवसेसा भाणियया जाव केवलवरनाणदंसणे समुप्पजिहिति 12 / तए णं से दढप्पइन्ने केवली अप्पणो तीश्रद्धं ग्राभोएहीइ 2 समणे निग्गंथे सदावेहिति 2 एवं वदिहीइ-एवं खलु अहं अजो ! इयो चिरातीयाए श्रद्धाए गोसाले नाम मंखलिपुत्ते होत्था ससणघायए जाव छउमत्थे चेव कालगए तम्मूलगं च णं अहं अजो! अणादीयं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकतारं अणुपरियट्टिए, तं मा णं अजो! तुझ केयि भवतु पायरियपडिणीयए उवज्झायपडिणीए पायरियउवझायाणं अयसकारए अवनकारए अकित्तिकारए, मा णं सेऽवि एवं चेव अणादीयं अणवदग्गं जाव संसारकंतारं अणुपरियट्टिहिति 13 / जहा णं अहं / तए णं ते समणा निग्गंथा दढप्पइन्नस्स केवलिस्स अंतियं एयमटुं सोचा निसम्म भीया तत्था तसिया संसार भउविग्गा दढप्पइन्नं केवलिं वंदिहिंति 2 तस्स ठाणस्स पालोइएहिंति पडिकमेहिति निदिहिंति जाव अहारियं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवजिहिति 14 / तए णं से दढप्प्पइन्ने केवली बहुइं वासाइं केवलपरियागं पाउणिहिति बहूहिं 2 अप्पणो बाउसेसं जाणेना भत्तं पञ्चक्खाहिति एवं जहा उववाइए जाव सव्वदुक्खाणमंतं काहिति 15 / सेवं भंते ! 2 ति जाव विहरइ 16 // सूत्रं 560 // तेयनिसग्गो सम्मत्तो // समत्तं च पन्नरसमं सयं एकसरयं // // इति पञ्चदशमं शतकम् // 15 // - // अथ षोडशशतके अधिकरणाख्य-प्रथमोशकः / / अहिगरणि जरा कम्मे जावतियं गंगदत्त सुमिणे य / उपयोग लोग बलि योही दीव उदही दिसा थणिया // 1 // तेणं काले णं ते णं समए णं रायगिहे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी-अस्थि णं भंते ! अधिकरणिसि वाउयाए वक्कमति ?, हंता अस्थि 1 /
SR No.004364
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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