________________ श्रीमव्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्रं : शतकं 2: उ० 2-3-4-5 ) (65 // अथ द्वितीयशतके समुद्घाताख्य-द्वितीयोद्देशकः // कति णं भंते ! समुग्धाया पराणत्ता ?, गोयमा ! सत्त समुग्घाया पराणत्ता, तंजहा-वेदणासमुग्घाए एवं समुग्घायपदं छाउमत्थियसमुग्घायवज्ज भाणियव्वं, जाव वेमाणियाणं कसायसमुग्घाया अप्पाबहुयं / श्रणगारस्स णं भंते ! भावियप्पणो केवलिसमुग्घाय जाव सासयमणागयद्धं चिट्ठति, समुग्घायपदं नेयव्वं ॥सू०१७ // वितीयसए बितीयोहे सो॥ .... // इति वितीयशतके द्वितीय उद्देशकः // 2-2 // // अथ द्वितीयशतके पृथिवीनामक-ततीयोद्देशकः // - कति गां भंते ! पुढवीयो पन्नत्तायो ?, जीवाभिगमे नेरइयाणं जो वितियो उद्दे सो सो नेयव्यो,-पुढविं योगाहित्ता निरया संठाणमेव बाहल्लं / विक्खंभपरिक्खेवो वराणो गंधो य फासो य // 1 // जाव किं सव्वपाणा उववरणपुव्वा ?, हंता गोयमा ! असतिं अदुवा अणंतखुत्तो॥ सू० 18 // पुढवी उद्दे सो॥ // इति द्वितीयशतके तृतीय उद्देशकः // 2-3 // // अथ द्वितीयशतके इन्द्रियाख्य-चतुर्थोद्देशकाः // - कति गां भंते ! इंदिया पत्नत्ता ?, गोयमा ! पंचिंदिया पन्नत्ता, तंजहा-पढमिल्लो इंदियउद्देसो नेयम्वो, संगणं बाहल्लं पोहत्तं जाव अलोगो॥ सू० 11 // इंदियउद्दे सो॥ // इति द्वितीयशतके चतुर्थ उद्देशकः // 2-4 // // अथ द्वितीयशतके अन्यूथिकाख्य-पञ्चमोद्देशकः // ____अण्णउत्थिया गां भंते ! एवमाइक्खंति भासंति पनवेंति परुति, तंजहा-एवं खलु नियंठे कालगए समाणे देवभूएणं अप्पाणेणं से णं तत्थ णो अन्ने देवे नो अन्नेसिं देवाणं देवीयो अहिजुजिय 2