SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तिरियमागच्छ निहत्ताई कडाई पट्टावा वे दुव्बन्ने दुग्गा 36 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः द्वितीयो विभागा गोयमा ! जीवेणं गभगए समाणे जाव दुहियाए दुहिए भवइ, अहे णं पसवणकालसमयंसि सीसेण वा पाएहिं वा श्रागच्छइ सम(म्म)मागच्छइ तिरियमागच्छइ विणिहायमावजति(गच्छइ) 3 / वराणवज्झाणि य से. कम्माई बधाई पुट्ठाइं निहत्ताई कडाइं पट्टवियाई अभिनिविट्ठाई अभिसमन्नागयाइं उदिन्नाई नो उवसंताई भवंति तो भवइ दुरूवे दुव्बन्ने दुग्गंधे दूरसे दुप्फासे अणि8 अकते अप्पिए असुभे अमणुन्ने अमणामे हीणस्सरे दीणस्सरे अणिट्ठस्सरे अकंतस्सरे अप्पियस्सरे असुभस्सरे श्रमणुन्नस्सरे अमणामस्सरे अणाएजवयणे पचायाए यावि भवइ. वनवज्झाणि य से कम्माइं नो बद्धाइं जाव पसत्थं नेयव्वं जाव श्रादेजवयणं पचायाए यावि भवइ, सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति 4 // सू० 62 // सत्तमो उद्दे सो समत्तो॥ ॥इति प्रथमशतके सप्तम उद्देशकः // 1-7 / / // अथ प्रथमशतके आयुनामाष्टमोद्देशकः // रायगिहे समोसरणं जाव एवं वयासी-एगंतबाले णं भंते ! मासे कि नेरइयाउसं पकरेइ तिरिक्खजोगियाउयं मणुस्साउयं देवाउयं पकरेइ ?, नेरइयाउयं किचा नेरइएसु उववजइ तिरियाउयं किच्चा तिरिएसु उववजइ मणुस्साउयं किच्चा मणुस्सएसु उववजइ देवाउयं किच्चा देवलोएसु उववजइ ?, गोयमा ! एगंतवाले णं मणुस्से नेरइयाउयंपि पकरेइ तिरियाउयं मणुस्साउयं देवाउयंपि पकरेइ, नेरझ्याउयंपि किच्चा नेरइएसु उववजइ तिरियाउयं मणुस्साउयं देवाउयं किच्चा तिरिएसु मणुस्सएसु देवलोएसु उववज्जइ // सू० 63 // एगंतपंडिए णं भंते ! मणुस्से किं नेस्याउयं पकरेइ जाव देवाउयं किच्चा देवलोएसु उववज्जवति ?, गोयमा ! एगंतपंडिए णं मणुस्से थाउयं सिय पकरेइ सिय नो पकरेइ, जइ पकरेइ नो नेरइयाउयं पकरेइ नो तिरियाउयं पकरेइ नो मणुस्साउयं पकरेइ देवाउयं पकरेइ, नो नेरइयाउयं किचा.
SR No.004363
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1976
Total Pages468
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy