________________ श्रीमव्याख्याज्ञप्ति (श्रीमद्भगवती) सूत्रं : शतकं 10 : उ०३ ] [ 353 मासिया भिक्खुपडिमा निरवसेसा भाणियव्वा [जहा दसाहिं ] जाव धाराहिया भवइ / / सूत्रं 311 // भिक्खू य अन्नयरं अकिञ्चट्टाणं पडिसे-" , वित्ता से णं तस्स ठाणस्स प्रणालोइय-पडिक्कते कालं करेइ नत्थि तस्स थाराहणा, से णं तस्स ठाणस्स बालोइयपडिक्कते कालं करेइ अस्थि तस्स थाराहणा 1 / भिक्खू य अन्नयरं अकिचट्ठाणं पडिसेवित्ता(ज) तस्स णं एवं भवइ पच्छावि णं अहं चरमकालसमयंसि एयस्स ठाणस्स पालोएस्सामि जाव पडिवजिस्सामि, से णं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कते जाव नत्थि तस्स बाराहणा, से णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिक्कते कालं करेइ अत्थि तस्स राहणा 2 / भिक्खू य अन्नयरं अकिचट्ठाणं पडिसेवित्ता तस्स णं एवं भवइ-जइ ताव समणोवासगावि कालमासे कालं किचा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति किमंग पुण अहं अन्नपनियदेवत्तणंपि नो लभिस्सामित्तिकटटु से णं तस्स ठाणस्स प्रणालोइयपडिक्कते कालं करेइ नत्थि तस्स धाराहणा, से णं तस्स ठाणस्स बालोइयपडिक्कते कालं करेइ अस्थि तस्स बाराहणा 3 / सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति जाव विहरति 4 // सूत्रं 400 // - इति दशमशतके द्वितीय उद्देशकः // 10-2 // // अथ दशमशतके आत्माख्य-तृतीयोद्देशकः // रायगिहे जाव एवं वयासी-प्राइड्डीए णं भंते ! देवे जाव चत्तारि पंच देवावासंतराइं वीतिकंते तेण परं परिडीए ?, हंता गोयमा ! आइडीए णं तं चेव, एवं असुरकुमारेवि, नवरं असुरकुमारावासंतराइं सेसं तं चेव, एवं एएणं कमेणं जाव थणियकुमारे, एवं वाणमंतरे जोइसवेमाणिय जाव तेण परं परिडीए 1 / अप्पडिए णं भंते ! देवे से महडियस्स देवस्स मझमज्झणं वीइवइजा ?, णो तिण? समढे 2 / समिडीए णं भंते ! देवे