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________________ श्रीमत्स्यास्यविज्ञप्ति श्रीमद्भगवती) सत्रं : शतकं 6 : उ०७ ) [ 141 भवति सेण पर जोणीवोच्छेदे पत्नत्ते समणाउसो! / अंह भंते ! कलाय: मसूर-तिल-मुग्ग-मास-निष्फाव-कुलत्थ-प्रालिसंदग--सतीण-पलिमंथगमादीणं एएसि धन्नाणं केवतियं कालं जोणी संचिट्ठति ?, जहा सालीणं तहा एयाणवि, नवरं पंच संबच्छराई, सेसं तं चेत्र 2 / यह भंते ! अयसिकुसुभग-कोद्दव-कंगु-वरग-रालग-कोदूसग-सण-सरिसव-मूलगबीयमादीणं एएसिणं धनाणं केवतियं कालं जोणी संचिट्ठति , एयाणिवि तहेव, नवरं सत्त संवच्छराई, सेसं तं चेव 3 // सूत्र 246 // एगमेगस्स णं भंते ! मुहुत्तस्स केवतिया ऊसासद्धा वियाहिया ?, गोयमा असंखेंजाणं समयाणं समुदयसमितिसमागमेणं सा एगा श्रावलियत्ति पवुच्चइ, संखेजा श्रावलिया ऊसासो संखेजा श्रावलिया निस्सासो 1 / हट्टस्स अणवगल्लस्स, निरुवकिटुस्स जंतुणो। एगे ऊसासनीसासे, एस पाणुत्ति वुचति॥ 1 // सत्त पाणूणि से थोवे, सत्त थोवाइं से लवे / लवाणं सत्तहत्तरिए, एस मुहुत्ते वियाहिए // 2 // तिन्नि सहस्सा सत्त य सयाई तेवत्तरिं च ऊसासा / एस मुहुत्तो दिट्ठो सव्वेहि अणतनाणीहिं / / 3 // एएणं मुहृत्तपमाणेणं तीसमुहुत्तो अहोरत्तो, पनरस. अहोरत्ता पक्खो दो पक्खा मासो दो मासा उऊ तिन्निं उउए अयणे दो श्रयणे संवच्छरे पंचसंवच्छरिए जुगे वीसं जुगाई वाससयं दस वासंसयाई वासस. हस्सं सयं वाससहस्साई वाससयसहस्सं चउरासीति वाससयंसहस्साणि से एगे पुवंगे चउरासीती पुग्वंगसयसहस्साइं से एगे पुव्वे, एवं तुडिअंगे तुडिए, अडडंगे अडडे, अववंगे अववे, हुहुअंगे हुहुए, उप्पलंगे उप्पले, पउमंगे पउमे, नलिणंगे नलिणे, अत्यनिउरंगे अनिउरे, उअंगे श्रउए, पउअंगे पउए य, नउग्रंगे नउए यं, चूलिअंगे चूलिया य, सीसपहेलिअंगे सीसपहेलिया, एताव ताव गणिए एताव ताव गणियस्स. विसए, तेण परं श्रोवमिए 2 से किं तं श्रोवमिए, र दुविहे. पराणते तंजहा पलिग्रोवमे य सागरोवमे य, से कि तं पलिभोवमे ? से किं तं सागरोवमे ? सत्येण
SR No.004363
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1976
Total Pages468
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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