________________ 138 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः द्वितीयो विभागः बहूहिं श्राजातिसहस्सेहिं बहूई पाउयसहस्साई श्राणुपुग्विंगढियाइं जाव चिट्ठांति, एगेऽविय णं जीवे एगेणं समएणं एगं अाउयं पडिसंवेदेइ, तंजहाइहभवियाउयं वा परभवियाउयं वा, जं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ नो तं समयं परभवियाउयं पडिसंवेदेति जं समयं परभवियाउयं नो तं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेति, इहभवियाउयस्स पडिसंवेयणाए नो परभवियाउयं पडिसंवेदेइ परभवियाउयस्स पडिसंवेयणाए नो इहभवियाउयं पडि. संवेदेति, एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एग ग्राउयं पडिसंवेदेति,तंजहाइहभवियाउयं वा परभवियाउयं वा 3 // सूत्रं 183 // जीवे णं भंते ! जे भविए नेरइएसु उववजित्तए से णं भंते ! किं साउए संकमइ निराउए संकमइ ?, गोयमा ! साउए संकमइ नो निराउए संकमइ 1 / से णं भंते ! श्राउए कहिं कडे कहिं समाइराणे ?, गोयमा ! पुरिमे भवे कडे पुरिमे TERINISHRA भवे समाइराणे, एवं जाव वेमाणियाणं दंडयो 2 / से नूणं भंते ! जे जंभविए जोणि उववजित्तए से तमाउयं पकरेइ, तं जहा-नेरइयाउयं वा जाव देवाउयं वा ?, हंता गोयमा ! जे जंभविए जोणिं उववजित्तए से तमाउयं पकरेइ, तंजहा-नेरइयाउयं वा तिरिक्खजोणियाउयं वा मगुस्साउयं वा देवाउयं वा 3 / नेरइयाउयं पकरेमाणे सत्तविहं पकरेइ, तंजहारयणप्पभापुढविनेरइयाउयं वा जाव अहेसत्तमापुढविनेरइयाउयं वा, तिरिक्खजोणियाउयं पकरेमाणे पंचविहं पकरेइ, तंजहा-एगिदियतिरिक्खजोणियाउयं वा, भेदो सवो भाणियन्वो, मणुस्साउयं दुविहं, देवाउयं चउन्विहं 4 / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरइ 5 // सूत्रं 184 // // इति पञ्चमशतके तृतीय उद्देशकः // 5-3 //