________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवती) सूत्रक शतकं 5 : उ० 3 ] [137 रोमज्झामे सिंगज्झामे खुरझामे णहज्झामे एए णं पुव्वभावपण्णवणं पडुच्च तसपाणजीवसरीरा तयो पच्छा सत्यातीया जाव अगणीजीवसरीरा त्ति वत्तव्वं सिया 4 / श्रह भंते ! इंगाले छारिए भुसे गोमए एए णं किसरीरा वत्त-वं सिया ?, गोयमा ! इंगाले छारिए भुसे गोमए एए णं पुव्वभावपराणवणं पडुच्च एगिदिय-जीवसरीर-प्पयोग-परिणामियावि जाव पंचिंदियजीवसरीरप्पयोग-परिणामियावि तो पच्छा सस्थातीया जाव अगणिजीवसरीराति वत्तव्वं सिया 5 // सूत्रं 181 // लवणे णं भंते ! समुद्दे केवतियं चकवालविक्खंभेणं पन्नते ?, एवं नेयव्वं जाव लोगट्ठिती लोगागुभावे, सेवं भंते ! 2 त्ति भगवं जाव विहरइ // सूत्रं 182 // // इति पञ्चमशतके द्वितीय उद्देशकः // 5-2 // // अथ पञ्चमशतके ग्रन्थिनामक-ततीयोद्देशकः // अण्णउत्थिया णं भंते ! एवमातिक्खंति एवं भासंति एवं पनवेंति एवं पवेति से जहानामए जालगंठिया सिया प्राणुपुट्विगढिया अणंतरगढिया परंपरगढिया अन्नमन्नगढिया अन्नमनगुरुयत्ताए यन्नमन्नभारियत्ताए अन्नमन्न-गुरुय-संभारियत्ताए अरणमराणघडताए जाव चिट्ठति, एवामेव बहूणं जीवाणं बहूसु श्राजाति-सयसहस्सेसु बहूइं ग्राउयसहस्साइं प्राणुपुब्बिंगढियाइं जाव चिट्ठांति 1 / एगेऽवि य णं जीवे एगेणं समएणं दो याउयाइं पडिसंवेदयति, तंजहा-इहभवियाउयं च परभवियाउयं च 2 / जं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ तं समयं परभवियाउयं पडिसंवेदेइ जाव से कहमेयं भंते ! एवं ?, गोंयमा ! जन्नं ते अन्नउस्थिया तं चेव जाव परभवियाउयं च, जे ते एवमाहंसु तं मिच्छा, ते एवमाहंसु अहं पुण गोयमा ! एवमातिक्खामि जाव परूवेमि-से जहानामए जालगंठिया सिथा जाव अन्नमनघडताए चिट्ठति, एवामेव एगमेगस्स जीवस्स