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________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्त (श्रीमद्भगवती) सूत्र :: शतकं 5 : उ० 4 ] [ 136 // अथ पञ्चमशतके शब्दाभिध-चतुर्थोद्देशकः // छउमत्थे | भंते ! मगुस्से बाउडिजमाणाई सदाइं सुणेइ, तंजहासंखसहाणि वा सिंगसदाणि वा संखियसदाणि वा खरमुहिसदाणि वा पोयासदाणि वा. परिपिरियासदाणि वा पणवसहाणि वा पडहसदाणि वा भंभासदाणि वा होरंभसदाणि वा भेरिसदाणि वा झलरिसदाणि वा दुदुहिसदाणि वा तयाणि वा वितयाणि घणाणि वा झुसिराणि वा ?, हंता गोयमा ! छउमत्थे णं मणूसे याउडि जमाणाई सद्दाइं सुणेई, तंजहा-संखसहाणि वा जाव झुसिराणि वा 1 / ताई भंते ! किं पुट्ठाई सुणेइ अपुट्ठाई सुणेइ ?, गोयमा ! पुट्ठाई सुणेइ नो अपुट्ठाई सुणोइ, जाव नियमा छदिसिं सुणेइ 2 / छउमत्थे णं मणुस्से किं पारगयाइं सद्दाई सुणेइ पारगयाइं सदाई सुणेइ ?, गोयमा ! पारगयाइं सहाई सुणेइ नो पारगयाइं सहाई सुणेइ 3 / जहा णं भंते ! छउमत्थे मणुस्से पारगयाइं सदाई सुगोइ नो पारगयाइं सदाई सुणेइ तहा णं भंते ! केवली मणुस्से किं धारगयाई सदाइं सुणेइ पारगयाइं सदाइंसुणेइ ?, गोयमा ! केवली णं यारगयं वा पारगयं वा सव्वदूरमूलमणंतियं सद जाणेइ पासेइ 4 / से केण?णं तं चेव केवली णं थारगयं वा पारगयं वा जाव पासइ ?, गोयमा ! केवली णं पुरच्छिमेणं मियंपि जाणइ श्रमियंपि जागइ, एवं दाहिणेणं पञ्चत्थिमेणं उत्तरेणं उड्ढ अहे मियंपि जाणइ अमियंपि जाणइ, सव्वं जाणइ केवली सव्वं पासइ केवली, सव्वश्रो जाणइ पासइ, सव्वकालं जाणइ पासइ, सव्वभावे जाणइ केवली, सबभावे पासइ केवली 5 / अणंते नाणे केवलिस्स, अणते दंसणे केवलिस्स, निव्वुडे नाणे केवलिस्स, निबुडे दंसणे केवलिस्स, से तेणटेणं जाव पामइ 6 // सूत्रं 185 // छउमत्थे णं भंते ! मणुस्से हसेज वा उस्सुयाएज वा ?, हंता, हसेज वा उस्सुयाएज वा 1 / जहा णं भंते !
SR No.004363
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1976
Total Pages468
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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