________________ 284 ] [ श्रीमदागमसुवासिन्धुः :: प्रथमो विभागः 112 // असुरिंदवजियाणं भवणवासणं देवाणं देसूणाई दो पलिग्रोवमाई ठिती पन्नत्ता, सोहम्मे कप्पे देवाणं उनोसेणं दो सागरोवमाई ठिती पन्नत्ता, ईसाणे कप्प देवाणं उकोसणं सातिरेगाई दो सागरोवमाई ठिती पन्नत्ता, सणंकुमारे कप्पे देवाणं जहन्नेणं दो सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता, माहिंदे कप्पे देवाणं जहन्नेणं साइरेगाई दो सागरोवमाइं ठिती पत्नत्ता ॥सू० 113 // दोसु कप्पेसु कप्पत्थियायो पन्नत्तायो, तजहा-सोहम्मे चेव ईसाणे चेव ॥सू. 114 // दोसु कप्पेसु देवा तेउलेस्सा पन्नता, तंजहा-सोहम्मे चेव ईसाणे चेव ॥सू० 115 // दोसु कप्पेसु देवा कायपरियारगा पन्नत्ता तंजहासोहम्मे चेव ईसाणे चेव, दोसु कप्पेसु देवा फासपरियारगा पन्नत्ता तंजहासणंकुमारे चेव माहिंदे चेव, दोसु कप्पेसु देवा रूवपरियारगा पन्नत्ता तंजहाबंभलोगे चेव लंतगे चेव, दोसु कप्पेसु देवा सदपरियारगा पन्नत्ता तंजहामहासुक्के चेव सहस्सारे चेव, दो इंदा मणपरियारगा पन्नत्ता तंजहा-पाणए चेव अच्चुर चेव ॥सू० 116 // जीवा णं दुट्ठाणणिव्वत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसु वा चिणंति वा चिणस्संति वा, तंजहा-तसकायनिव्वत्तिए चेव थावरकायनिव्वत्तिए चेव, एवं उवचिणिंसु वा उवचिणंति वा उवचिणिस्संति वा, बंधिंसु वा बंति वा बंधिस्संति वा, उदीरिंसु वा उदीरेंति वा उदीरिस्तंति वा, वेदसु वा वेदेति वा वेदिस्संति वा, णिजरिंसु वा णिजरिंति वा णिज्जरिस्संति वा ॥सू० 117 // दुपएसिता खंधा अणंता पन्नत्ता, दुपदेसोगाढा पोग्गला अणंता पन्नत्ता एवं जाव दुगुणलुक्खा पोग्गला श्रणता पन्नत्ता ॥सू० 118 // दुट्ठाणं समत्तं // // इति चतुर्थोद्देशकाः // 2-4 // इति द्वितीयं द्विस्थानकाध्ययनम् // 2 //