________________ श्रीमत्स्थानाङ्गसूत्रम् / श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 4 ] [ 285 णिज्जे चेव सव्वणाणावरणिज्जे चैत्र 1 / दरिसणावरणिज्जे कम्मे एवं चेय 2 / वेयणिज्जे कम्मे दुविहे पन्नत्ते तंजहा--मातावेयणिज्जे चेव असातावेय. णिज्जे चेव 3 / मोहणिजे कम्मे दुविहे पनने तंजहा-दंसणमोहणिज्जे चेत्र चरित्तमोहणिज्जे चेव 4 / याउए कम्मे दुविहे पन्नत्ते तंजहा-यद्धाउए चेव भवाउए चेव 5 / णामे कम्मे दुविहे पन्नत्तेतंजहा-सुभणामे चेव असुभणामे चेव 6 / गोते कम्मे दुविहे पन्नतें तंजहा--उच्चागोते चेवणीयागोते चेव 7/ अंत. राइए कम्मे दुविह पन्नत्ते तंजहा--पडुच्चुपनविणासिए चेव पिहितागामिपहं (यागामिपदहे, यायमपह) 8 // सूत्र 105 // दुविहा मुच्छा पन्नत्ता तंजहा-पेजबत्तिता चेत्र, दोसवत्तिता चेव, पेजवत्तिया मुच्छा दुविहा पन्नत्ता तंजहा-माए चेर लोभे चेव, दोसवत्तिया मुन्छा दुविहा पन्नत्ता तंजहाकोहे चेव माणे चेव // सू० 106 // दुविहा श्राराहणा पत्नत्ता तंजहाधम्मिताराहणा चेव केवलियाराहणा चेव, धमियाराहणा दुविहा पन्नत्ता तंजहा-सुयधम्माराहणा चे चरित्तधम्माराहणा चेव, केवलियाराहणा दुविहा पन्नता तंजहा-अंतकिरिया चेव कप्पविमाणोववत्तिया चेव ॥सू० 107 // दो तित्थगरा नीलुप्पलसमा वन्नेणं पन्नत्ता तंजहा-मुणिसुब्बए चेव अरि?नेमी चेत्र; दो तित्थयरा पियंगुमामा वन्नेणं पन्नत्ता तंजहा-मल्ली चेव पासे चेत्र, दो तित्थयरा पउमगोरा वन्नेणं पनत्ता तंजहा--पउमप्पहे चेव वासुपुज्जे चेव, दो तित्थगरा चंदगोरा वन्नेणं पनत्ता तंजहा-चंदप्पभे चेव पुष्फदते चेव / / सू० 108 // सच्चप्पवायपुवस्स णं दुवे वत्थू पन्नत्ते, सू० 10 // पुबाभद्दवया-णक्खत्ते दुतारे पन्नत्ते, उत्तरभद्दवया-णक्खत्ते दुतारे पराणत्ते, एवं पुवफग्गुणी उत्तराफग्गुणी ॥सू० 110 // अंतो णं मणुस्सखेत्तस्स दो समुद्दा पन्नत्ता तंजहा-लवणे चेव कालोदे चेव ॥सू० 111 // दो चकवट्टी अपरिचत्तकामभोगा कालमासे कालं किच्चा अहेसत्तमाए पुढवीए अप्पतिठाणे णरए नेरइतत्ताए उववन्ना तंजहा-सुभूमे चेव बंभदत्ते चेव ॥सू०