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________________ 444 ] [श्रीमदागमसुधासिन्धुः। प्रथमो विभागेः सहस्साई विक्खंभेणं पराणत्ता, तेसि णं महापातालाणं कुट्ठा सव्ववइरामया सव्वत्थसमा दस जोयणसयाई बाहल्लेणं पन्नत्ता 4 / सव्वेऽवि णं खुद्दा पाताला दस जोयणसताइं उव्वेहेणं पन्नता, मूले दसदसाइं जोयणाई विक्खंभेणं, बहुमज्झदेसभागे एगपएसिताते सेढीते दस जोयणसताई विक्खंभेणं पन्नत्ता, उपरि मुहमूले दसदसाइं जोयणाई विक्खंभेणं पन्नत्ता, तेसि णं खुड्डापातालाणं कुड्डा सव्ववइरामता सव्वत्थ समा दस जोयणाई बाहल्लेणं पराणत्ता 5 // सू० 720 // धायतिसंडगा णं मंदरा दसजोयणसयाइं उन्हेणं धरणितले देसूणाई दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं उवरिं दस जोयणसयाई विखंभेणं पन्नत्ता / पुक्खरवरदीवद्धगा णं मंदरा दस जोयण एवं चेव // सू० 721 // सव्वेऽवि णं वट्टवेयद्धपव्वता दस जोयणसयाई उद्धं उच्चत्तेणं दस गाउयसयाइमुव्वेहेणं सव्वत्थसमा पल्लंगसंठाणसंठिता, दस जोयणसयाई विक्खं. भेणं पन्नत्ता // सू० 722 // जंबद्दीवे (2) दस खेत्ता पन्नत्ता, तंजहाभरहे एरवते हेमवते हेरन्नवते हरिवस्से रम्मगवस्से पुव्वविदेहे अवरविदेहे देवकुरा उत्तरकुरा // सू० 723 ॥माणुसुत्तरे णं पव्वते मूले दस बावीसे जोयणसते विक्खंभेणं पन्नत्ते // सू० 724 // सव्वेऽवि णमंजणगपव्वता दस जोयणसयाइमुब्बेहेणं मूले दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं उवरिं दस जोयणसताई विखंभेणं पन्नत्ता 1 / सव्वेऽवि णं दहिमुहपब्वता दस जोयणसताई उव्वेहेणं सव्वत्थसमा पल्लगसंठाणसंठिता दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं पन्नत्ता 2 / सवेऽवि णं रतिकरगपवता दस जोय. सताई उद्धं उच्चत्तेणं दसगाउयसत्ताइं उव्वेहेणं सव्वत्थसमा झलरिसंठिता दस जोयणसहस्साइं विवखंभेणं पन्नत्ता 3 // सू० 725 // रुयगवरे णं पव्वते दस जोयणसयाई उव्वेहेणं मूले दस जोयणसहस्साई विवखंभेणं उवरिं दस जोयणसताई विक्खंभेषणं पन्नत्ते / एवं कुंडलवरेऽवि // सू० 726 //
SR No.004362
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 03 of 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size22 MB
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