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________________ 266 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः // द्विस्थानकाध्ययने-२ :: उद्देशकः 2 // जे देवा उड्डोववनगा कप्पोक्वन्नगा विमाणोववन्नगा चारोववनगा चारद्वितीया गतिरतिया गतिसमावन्नगा, तेसिणं देवाणं सता समितं जे पावे कम्मे कजति तत्थगतावि एगतिया वेयणं वेदेति अन्नत्थगतावि एगतिया वेत्रणं वेदेति, गरइयाणं सता समियं जे पावे कम्मे कजति तत्थगतावि एगतिया वेयणं वेदेति अन्नत्थगतावि एगतिया वेयणं वेदेति, जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं मणुस्साणं सता समितं जे पावे कम्मे कजति इहगतावि एगतिता वेषणं वेयंति अन्नत्थगतावि एगतिया वेयणं वेयंति, मणुस्सवजा सेसा एकगमा ॥सू० 77 // नेरतिता दुगतिया दुयागतिया पन्नत्ता तंजहा-नेरइए 2 सु उबवजमाणे मणुस्सेहिंतो वा पंबिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो वा उववज्जेजा, से चेव णं से नेरइए णेरइयत्तं विप्पजहमाणे मणुस्सत्ताए वा पंचेंदियतिरिक्खनोणियत्ताए वा गच्छेजा, एवं असुरकुमारावि, णवरं, से चेणं से असुरकुमारे यसुरकुमारत्तं विप्पजहमाणे मणुस्सचाए वा तिरिक्खजोणियत्ताए वा गच्छिज्जा, एवं सव्वदेवा, पुढविकाइया दुगतिया दुयागतिया पन्नत्ता तंजहा-पुढवीकाइए पुढवीकाइएसु उववजमाणे पुढवीकाइएहितो वा णोपुढवीकाइएहितो वा उववज्जेजा, से चेव णं से पुढविकाइए पुढवीकाइयत्तं विप्पजहमाणे पुढवीक इयत्ताए वा णोपुढवीकाइयत्ताए वा गच्छेज्जा, एवं जाव मणुस्सा ॥सू० 78 // दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तनहा-भवसिद्धिया चेव अभवसिद्धिया चेव, जाव वेमाणिया 1 / दुविहा नेरइया पन्नत्ता तंजहा-यणंतरोववनगा चेव परंपरोववन्नगा चेव जाव वेमाणिया 2 / दुविहा णेरइया पत्नत्ता, तंजहा-गतिसमावन्नगा चेव अगतिसमावन्नगा चेव, जाव वेमाणिया 3 / दुविहा नेरइया पन्नत्ता तंजहा-पढमसमग्रोववन्नगा चेव अपढमसमयोववन्नगा चेव जाव वेमाणिया 4 / दुविहा. नेरइया पन्नत्ता
SR No.004362
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 03 of 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size22 MB
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