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________________ श्रीमत्स्थानाङ्गसूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2] [ 265 सरीरगा पन्नत्ता तंजहा-यभंतरगे चेव बाहिरगे चेव, अभंतरए कम्मए बाहिरए वेउन्धिए, एवं देवाणां भाणियव्वं, पुढवीकाइयाणं, दो सरीरगा पन्नत्ता तंजहा-यभंतरगे चेव बाहिरगे चेव अभंतरगे कम्मए बाहिरगे थोरालियगे, जाव वणस्लइकाइयाणां. बेइंदियागां दो सरीरा पनत्ता तंजहा-यभंतरए चेव बाहिरए चेव, अभंतरगे कम्मए, ट्ठिमंसमोणितबद्धे बाहिरए योरालिए, जाव चरिंदियागां, पंबिंदियतिरिक्खजोणियाणां दो सरीरगा पन्नत्ता तंजहा-यभंतरगे चेव बाहिरगे चेव, अभंतरगे कम्मए, यटिमंससोणियबहारुछिरावद्धे वाहिरए योरालिए, मणुस्साणवि एवं- चेव / विग्गहगइसमावन्नगाणां नेरइयाणां दो सरीरगा पन्नत्ता तंजहा-तेयए चेव कम्मए चेत्र, निरन्तरं जाव वेमाणियाणां, नेरइयाणं दोहिं ठाणेहिं सरारुप्पत्ती सिया, तंजहा-रागेण चेत्र दोसेण चेत्र, जाव वेमाणियाणं, नेरइयाणं दुट्ठागानिधतिए सरीरगे पन्नत्ते तंजहा-रागनिव्वत्तिए चेव, दोसनिव्वत्तिए चेव जाव वेमाणियाणं, दो काया पन्नत्ता तंजहा-तसकाए चेव थावरकाए चेव, तसकाए दुवि. पन्नते तंजहा-भवसिद्धिए चेव अभवसिद्धिए चेव, एवं थावरकाएऽवि ॥सू० ७॥दो दिमायो अभिगिज्म कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा पव्वा वित्तर-पाईणं चेव उदीणं चेव, एवं मुंडावित्तए सिक्खावित्तए उवठ्ठावित्तए भुजित्तए संवसित्तए सज्झायमुद्दिसित्तए सज्झायं समुद्दिसित्तए सज्झायमणुजाणित्तए बालोइत्तए पडिक्कमित्तए निंदित्तए गरहित्तए विउट्टित्तए विसोहित्तए अकरणयाए अभुट्टित्तए श्राहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवजित्तए, दो दिसातो अछिगिज्झ कप्पति णिग्गंथाण वा गिग्गंथीण वा अपच्छिममार. णंतियसलेहणाजूसणाजूसियाणं भत्तपाणपडियाइक्खिताणं पायोवगताणं कालं अणवकंखमाणाणं विहरित्तए, तंजहा-पाईणं चेव उदीणं चेव ॥सू० 76 // // विद्वाणस्स पढमो सभी समत्तो 2-1 //
SR No.004362
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 03 of 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size22 MB
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