________________ श्रीमत्स्थानाङ्गसूत्र : श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2 ] [ 267 तंजहा-याहारगा चेव यणाहारगा चेव, एवं जाव वेमाणिया 5 / दुविहा गोरझ्या पन्नता तंजहा - उस्तासगा चेव णोउस्सासगा चेव, जाव वेमाणिया 6 / दुविहा नेरझ्या पत्रत्ता तंजहा--सइंदिया चेव अणिं दिया फेव, जाय वेमाणिया 7 / दुविहा नेरइया पन्नत्ता तंजहा--पजत्तगा चेव अपजतगा चेव, जाव वेमाणिया 8 / दुविहा नेरझ्या पन्नत्ता तंजहा-सन्नि चेव यसन्नि चेव, एवं पंचेंदिया सब्वे विगलिंदियवजा, जाव वाणमंतरा (वेमागिया) 1 / दुविहा नेरइया पन्नत्ता तंजहा-भासगा चेव अभासगा चेव, एवमेगिदियवजा मब्वे 10 / दुविा नेरझ्या पन्नत्ता तंजहा-सम्मट्टिीया चेव मिच्छट्टिीया चेव, एगिदियवजा सब्वे 11 / दुविहा नेरझ्या पन्नत्ता तंजहा-परित्तसंमारिता चेव अणंनसंमारिया चेव, जाव वेमाणिया 12 / दुविहा नेरइया पन्नता तंजहा-संखेजकालसमयद्वितीया (संखेजकालटिझ्या) व असंखेजकाल. समयद्वितीया चेव, एवं पंचेंदिया एगिदियविगलिंदियवजा जाव वाणमंतरा 13 / दुविहा नेरइया पन्नत्ता तंजहा-सुलभबोधिया चेव दुलभबोधिया चेव, जाव वेमाणिया 14 / दुविहा नेरइया पन्नत्ता तंजहा-कराहपक्खिया चेय सुक्कपक्खिया चेव, जाव वेमाणिया 15 / दुविहा नेरइया पन्नत्ता तंजहाचरिमा चेव अचरिमा चेव, जाव वेमाणिया 16 ॥सू० 7 // दोहिं ठाणेहिँ थाया अधोलोगं जाणइ पासइ तंजहा-समोहतेणं चे अप्पाणेणं याया यहेलोगं जाणइ पासइ, असमोहतेणं चेव अप्पाणेणं पाया पहेलोगं जाणइ पासइ, अाधोहि समोहतासमोहतेणं चेव अप्पाणेणं थाया अहेलोगं जाणाइ पासइ एवं तिरियलोगं 2 उडलोगं 3 केवलकप्पं लोगं 4 / दोहिं ठाणेहिं पाया अधोलोगं जाणइ पासइ तंजहा-विउव्वितेण चेव अप्पाणेणं याता अधोलोगं जागाइ पासइ, अविउब्बितेणं चेव अप्पाणेणं पाता अधोलोगं जाणइ पासइ, ग्राहोधि विउब्वियाविउवितेण चेव अप्पाणेणं आता अधोलोगं जाणइ (पासइ) 1, एवं तिरियलोगं 2 उड्ढलोगं 3 केवलकप