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________________ श्रीमत्स्थानाङ्गसत्रम् :: अध्ययनं 7 ] [ 401 अजीवा चेव, जे ते एवमाहंसु मिच्छं ते एवमाहंसु, तस्स णमिमे चत्तारि जीवनिकाया णो सम्ममुवगता भवंति, तंजहा-पुढविकाइया पाऊकाइया तेऊकाइया वाउकाइया, इच्चेतेहिं चउहिं जीवनिकाएहिं मिच्छादंडं पवत्तेइ सत्तमे विभंगणाणे 7 // सू० 542 // सत्तविधे जोणिसंगधे पन्नत्ते, तंजहा-अंडजा पोतजा जराउजा रसजा संसेइया ( संसत्तगा) संमुच्छिमा उब्भिगा 1 / अंडगा सत्तगतिता सत्तागतित्ता पन्नत्ता, तंजहा-अंडगे अंडगेसु उववजमाणे अंडतेहिंतो वा पोतजेहिंतो वा जाव उभिएहितो वा उववज्जेजा, से चेव णं से अंडते अंडगत्तं विष्पजहमाणे अंडगत्ताते वा पोतगताते वा जाव उभियत्ताते वा गच्छेजा पोत्तगा सत्तगतिता सत्तागतित्ता, एवं चेव सत्तराहवि गतिरागती भाणियव्वा, जाव उब्भियत्ति 2 // सू० 543 // पायरियउवज्झायस्स णं गणंसि सत्त संगहठाणा पन्नत्ता, तंजहा-पायरियउवज्झाए गणंसि श्राणं वा धारणं वा सम्म पउंजित्ता भवति, एवं जधा पंचट्ठाणे जाव थायरियउवमाए गणंसि यापुच्छियचारि यावि भवति नो अणापुच्छियचारि यावि भवति, शायरियउवज्झाए गणंसि अणुप्पन्नाई उवगरणाई सम्मं उप्पाइत्ता भवति, पायरियउवज्माए गणंसि पुवुप्पन्नाइं उवकरणाई सम्मं सारवखेत्ता संगोवित्ता भवति णो असम्मं सारक्खेत्ता संगोवित्ता भवइ 1 / पायरियउवज्झायस्स णं गणंसि सत्त असंगहठाणा पन्नत्ता, तंजहा-बायरिय. उज्झाए गणंसि पाणं वा धारणं वा नो सम्भं पउंजित्ता भवति, एवं जाव उवगरणाणं नो सम्म सारक्खेता संगोवेत्ता भवति 2 // सू० 544 // सत्त पिंडेसणायो पन्नत्तातो 1 / सत्त पाणेसणाश्रो पन्नताश्रो 2 / सत्तउग्गेहपडिमातो पन्नत्तातो 3 / सत्तसत्तिकया पन्नत्ता 4 / सत्त महऽझयणा पराणत्ता 5 / सत्तसत्तमिया णं भिक्खुपडिगा एकूणपराणताते रातिदिएहिमेगेण य छराणउएणं भिक्खासतेणं अहासुत्तं जाव बाराहियावि भवति 6 // सू० 545 / /
SR No.004362
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 03 of 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size22 MB
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