________________ श्रीमत्स्थानाङ्गसूत्रम् :: अध्ययनं 6 ] [ 389 // अथ षष्ठस्थानकाख्यं षष्ठमध्ययनम् // छहिं ठाणेहिं संपन्ने अणगारे अरिहति गणं धारित्तते, तंजहासट्ठी पुरिसजाते, सच्चे पुरिसजाते, मेहावी पुरिसजाते, बहुस्सुते पुरिसजाते, सत्तिमं, अप्पाधिकरणे // सू० 475 // छहिं ठाणेहिं निग्गंथे निग्गंथिं गिराहमाणे वा अवलंबमाणे वा नाइकमइ, तंजहा-खित्तचित्तं दित्तचित्तं जक्खातिट्ठ उम्मातपत्तं उवसग्गपत्तं साहिकरणं // सू० 476 // छहिं ठाणेहिं निग्गंथा निग्गंथीयो य साहम्मितं कालगतं समायरमाणा णाइक्कमंति, तंजहा-अंतोहिंतो वा बाहिं णीणेमाणा, बाहीहिंतो वा निब्बाहिं णीणेमाणा, उवेहमाणा वा, उवासमाणा वा (भयमाणा वा, उवसामेमाणा वा). अणुन्नवेमाणा वा, तुसिणीते वा संपव्वयमाणा // सू० 477 // छ ठाणाई छउमत्थे सव्वभावेणं ण जाणति ण पासति, तंजहाधम्मस्थिकायमधम्मत्थिकातं श्रायासं जीवमसरीरपडिबद्धं परमाणुपोग्गलं सह 1 / एताणि चेव उप्पननाणदंसणधरे अरहा जिणे जाव सव्वभावेणं जाणति पासति, तंजहा-धम्मत्थिकातं जाव स 2 // सू० 478 // छहिं ठाणेहिं सबजीवाणं णत्थि इड्डीति वा जुत्तीति वा, जसेइ वा बलेति वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेति वा, तंजहा- जीवं वा अजीवं करणताते, अजीवं वा जीवं करणताते, एगसमएणं वा दो भासातो भासित्तते, सयं कडं वा कम्मं वेदेमि वा मा वा वेएमि, परमाणुपोग्गलं वा छिदित्तए वा भिंदित्तए वा अगणिकातेण वा समोदहित्तते, बहिता वा लोगंता गमणताते // सू० 471 // छज्जीवनिकाया पन्नत्ता, तंजहा-पुढविकाइया जाव तसकाइया // सू० 480 // छ तारग्गहा पन्नत्ता तंजहा-सुक्के बुहे बहस्सति अंगारते सनिचरे केतू // सू० 481 // छविहा संसारसमावनगा जीवा पन्नता. तंजहा-पुढविकाइया जाव तसकाइया 1 / पुढविकाइया छगइया छत्रागतिता पनत्ता, तंजहा-पुढविकातिते पुढविकाइएसु उक्वजमाणे पुढवि.