________________ 388] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः प्रथमो विभागः 1 / सोहम्मीसाणेसु णं कप्पेसु विमाणा पंचजोयणसयाई उड्ड उच्चत्तेणं पन्नत्ता 2 / बंभलोगलंततेसु णं कप्पेसु देवाणं भवधारणिजसरीरगा उक्को. सेणं पंचरयणी उड्ड उच्चत्तेणं पन्नत्ता 3 / नेरइया णं पंचवन्ने पंचरसे पोग्गले बंधेसु वा बंधंति वा बंधिस्संति वा, तंजहा-किराहे जाव सुकिरले, तित्ते जाव मधुरे, एवं जाव वेमाणिता 24, 4 // सू० 461 // जंबुद्दीवे (2) मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं गंगा महानदी पंच महानदीयो समप्पेंति, तंजहा-जउणा सरऊ अादी कोसी मही 1 / जंबूमंदरस्स दाहिणेगां सिंधुमहाणदी पंच महानदीयो समप्पेति, तंजहा-सतद्द, विभासा वितत्था एरावती चंदभागा 2 / जंबूमंदरस्स उत्तरेगां रत्तामहानई पंच महनईश्रो समप्पंति, तंजहा-किराहा महाकिराहा नीला महानीला महातीरा 3 / जंबूमंदरस्स उत्तरेणं रत्तावतीमहानई पंच महानईयो समप्पेंति, तंजहा-इंदा इंदसेणा सुसेणा वारिसेणा महाभोया 4 // सू० 470 // पंच तित्थगरा कुमारवासमज्झावसित्ता (मज्भेवसित्ता) मुडा जाव पव्वेतिता, तंजहावासुपुज्जे मल्ली अरिट्ठनेमी पासे वीरे॥ सू० 471 // चमरचंचाए रायहाणीए पंच सभा पन्नत्ता तंजहा-सभा सुधम्मा उववातसभा अभिसेयसभा अलंकारितसभा ववसातसभा 1 / एगमेगे णं इंदट्ठाणे णं पंच समायो पन्नत्तायो, तंजहा-सभा सुहम्मा जाव ववसातसभा // सू० 472 // पंच णवखत्ता पंचतारा पन्नत्ता तंजहा-गिट्टा रोहिणी पुणव्वसू हत्थो विसाहा // सू० 473 // जीवाणं पंचट्ठाणणिवित्तिते पोग्गले पावकम्मताते चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तंजहा-एगिदितनिव्वत्तिते जाव पंचिंदितनिव्वत्तिते 1 / एवं-'चिण उवचिण बंध उदीर वेद तह णिजरा चेव' 2 / पंचपतेसिता खंधा अता पराणत्ता, पंचपतेसोगाढा पोग्गला अणंता पराणत्ता जाव पंचगुणलुवखा पोग्गला अणंता पराणत्ता 3 // सू० 474 // पंचमट्ठाणरस तईयो उद्दे सो / पंचमझयणं समत्तं // इति पञ्चमस्थानकस्य तृतीयोद्देशकः // 5-3 / / इति पञ्चममध्ययनम् // 5 //