________________ श्रीमत्स्थानाङ्गसूत्रम् / अध्ययनं 5 ] [ 387 जीवेस्स णिजाणमग्गे पन्नत्ते तंजहा-पातेहिं ऊरूहिं उरेणं सिरेणं सबंगेहिं, पाएहि णिजाणमाणे निरयंगामी भवति, उरूहि णिजाण(य)माणे तिरियगामी भवति, उरेणं निजायमाणे मणुयगामी भवति, सिरेणं णिजायेमाणे देवगामी भवति, सव्वंगेहिं ( सव्वेहिं ) निजायमाणे सिद्धिगतिपज्जवसाणे पराणत्ते // सू० 461 // पंचविहे छेयणे पन्नत्ते, तंजहा-उप्पायथ्यणे वियच्छेयणे बंधच्छेयणे पएस(पंथ)च्छेयणे दोधारच्छेयणे 1 / पंचविधे श्राणंतरिए पन्नते तंजहा-उप्पातयणंतरिते वितणंतरिते पतेसाणंतरिते समताणंतरिए सामराणागांतरिते 2 / पंचविधे अणंते पन्नत्ते तंजहा-णामणंतते ठवणाणंतते दवाणंतते गणणाणंतते पदेसाणंतते, अहवा पंचविहे श्रणंतते पन्नत्ते तंजहाएगंतोऽणंतते दुहतोणंतए देसवित्थारतए सव्ववित्थाराणंतते सासयागांतते॥ सू० 462 // पंचविहे णाणे पन्नत्ते तंजहा-श्राभिणिबोहियणाणे सुयनाणे श्रोहिणाणे मणपजवणाणे केवलणाणे // सू० 463 // पंचविहेणाणावरणिज्जे कम्मे पन्नत्ते तंजहा-श्राभिणिबोहियणाणावरणिज्जे जाव केवलनाणावरणिज्जे // सू. 464 // पंचविहे सज्झाए पन्नत्ते तंजहावायणा पुन्छणा परियट्टणा अणुप्पेहा धम्मकहा // सू० 465 // पंचविहे पञ्चरखाणे पन्नत्ते तंजहा-सदहणसुद्धे विणयसुद्धे अणुभासणासुद्धे अणुपालणासुद्धे भावसुद्धे // सू० 466 // पंचविहे पडिकमणे पन्नत्ते तंजहा-वासवदारपडिक्कमणे मिच्छत्तपडिक्मणे कसायपडिक्कमणे जोगपडिकमणे भावपडिक्कमणे // सू० 467 // पंचहिं ठाणेहिं सुत्तं वाएजा, तंजहा-संगहठ्ठयाते उवग्गहणट्ठयाते णिजरणट्ठयाते सुत्ते वा मे पजवयाते भविस्मति सुत्तस्म वा अवोच्छित्तिणयट्ठयाते 1 / पंचहिं ठाणेहिं सुत्तं सिक्खिजा, तंजहा-णाणट्टयाते दंसणट्ठयाते चरित्तट्ठयाते दुग्गहविमोतणट्ठयाते अहत्थे वा भावे जाणिस्सामीतिकट्टु // सू० 468 // सोहम्मीसाणेसु णं कप्पेसु विमाणा पंचवराणा पन्नत्ता, तंजहा-किराहा जाव सुकिल्ला