________________ 386 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः पंचगतिइया पंचागतिता पन्नत्ता, तंजहा-एगिदिए एगिदितेसु उववजमाणे एगिदितेहिंतो जाव पंचिंदिएहिंतो वा उववज्जेजा, से चेव णं से एगिदिए एगिदितत्तं विष्पजहमाणे एगिदितत्ताते वा जाव पंचिंदितत्ताते वा गच्छेजा 2 / ३दिया पचगतिता पंचागइया एवं चेव 3 / एवं जाव पंचिंदिया पंचगतिता पंचागइया पन्नत्ता तंजहा-पंचिंदिया जाव गच्छेजा 45-6 / पंचविधा सबजीया पत्नत्ता तंजहा-कोहकसाई जाव लोभकसाई यकसाती 7 / ग्रहवा पंचविधा सव्वजीवा पन्नत्ता तंजहा-नेरइया जाव देवा सिद्धा 8 // सू० 458 // ग्रह भंते ! कमलसूर-तिलमुग्गमास-णिप्फावकुलत्थया(अ)लिसंदगसतीण-पलिमंथगाणं एतेसि णं धन्नाणं कुहाउत्ताणं जधा सालीणं जाव केवतितं कालं जोणी संचिट्ठति ?, गोयमा ! (मा) जहराणेणं अंतोमुहुत्तंउकोसेणं पंच संवच्छराइं, तेण परं जोणी पमिलायति जाव तेण परं जोणीवोच्छेदे पराणत्ते // सू० 451 // पंच संवच्छरा पन्नत्ता, तंजहा-णक्खत्तसंवच्छरे जुगसंवच्छरे पमाणसंवच्छरे लक्खणसंवच्छरे सणिंचरसंवच्छरे 1 / जुगसंवच्छरे पंचविहे पन्नत्ते तंजहा-चंदे चंदे अभिवडिढते चंदे अभिवड्डिते चेव / पमाणसंवच्छरे पंचविहे पन्नत्ते तंजहानक्खत्ते चंदे ऊऊ अादिच्चे अभिवढिते 3 / लक्खणसंवच्छरे पंचविहे पन्नत्ते तंजहा-समगं नक्खता जोगं जोयंति समगं उदू परिणमंति। णच्चुराहं णातिसीतो बहूदतो होति नक्खत्ते // 1 // ससिसगलपुराणमासी जोतेती विसमचारणक्खत्ते। कडुतो बहूदतो ( या ) तमाहु संवच्छरं चंदं // 2 // विममं पवालिणो परिणमन्ति अणुदुसु देति पुप्फफलं / वासं ण सम्मं वासति तमाहु संवच्छरं कम्मं // 3 // पुढविदगाणं तु रसं पुप्फफलाणं तु देइ अादिचो / अप्पेणवि वासेणं सम्मं निष्फज्जए सस्सं ( सामं ) // 4 // श्रादिनतेयतविता खणलवदिवसा उऊ परिणमंति / पूरिति रेणुथलताई ( पुरेइ य थलयाई ) तमाहु अभिवहितं जाण // 5 // ॥सू. 460 // पंचविधे