________________ श्रीमत्स्थानाङ्गसूत्रम् :: अध्ययनं 5 ] [ 385 तंजहा-उरिणए उट्टिते साणते पञ्चापिचियते मुजापिचिते नामं पंचमए // सू० 446 // धम्मं चरमाणस्स पंच णिस्माठाणा पन्नत्ता तंजहा-छक्काए गणे राया गिहवती सरीरं / सू० 447 // पंच णिही पन्नत्ता तंजहा-पुत्तनिही मित्तनिही सिप्पनिही धणणिही धन्नणिही। सू० 448 // सोए पंचविहे पन्नत्ते तंजहा-पुढविसोते ग्राउसोते तेउसोते मंतसोते बंभसोते॥सू० 441 // पंच ठाणाइं छउमत्थे सव्वभावेणं ण जाणति ण पासति, तंजहा-धत्मस्थिकातं अधम्मत्थिकातं श्रागासत्थिकायं जीवं असरीरपडिबद्धं परमाणुपोग्गलं, एयाणि चेव उप्पन्ननाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली सव्वभावेणं जाणति पासति धम्मत्थिकातं जाव परमाणुपोग्गलं // सू० 450 // अधोलोगे णं पंच श्रृणुत्तरा महतिमहालता महानिरया पनत्ता तंजहा-काले महाकाले रोरुते महारोरुते अप्पतिट्टाणे 1 / उड्डलोगे णं पंच अणुत्तरा महतिमहालता महाविमाणा पन्नत्ता तंजहा-विजये विजयंते जयंते अपराजिते सव्वट्ठ सिद्धे 2 // सू० 451 // पंच पुरिसजाता पन्नत्ता तंजहा-हिरिसत्ते हिरिमणसत्ते चलसत्ते चिरसत्ते उदतणसत्ते // सू० 452 // पंच मच्छा पन्नत्ता तंजहा-अणुलोतचारी पडिसोतचारी यंतचारी मज्झचारी सब्वचारी, एवामेव पंच भिक्खागा पन्नत्ता तंजहा-अणुसोयचारी जाव सब्बसोयचारी // सू० 453 // पंच वणीमगा पन्नत्ता तंजहा-अतिहिवणीमते किविणवणीमते माहणवणीमते साणवणीमते समणवणीमते // सू० 454 // पंचहिं ठाणेहिं अचेलए पसत्थे भवति, तंजहा-अप्पा पडिलेहा, लाघविए पसत्थे, रूवे वेसासिते, तवे अणुनाते, विउले इंदियनिग्गहे // सू० 455 // पंच उक्ला पन्नत्ता तंजहा-दंडुक्कले रज्जुक्कले तेणुकले देसुकले सव्वुक्कले // सू० 456 // पंच समितीतो पत्नत्तायो तंजहा-ईरियासमिती भाससमिती जाव पारिट्ठावणियासमिती // सू० 457 // पंचविधा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता तंजहा-एगिदिता जाव पंचिंदिता 1 / एगिदिया