________________ अथवा किमेतैः क्रियते मोहादालजालविचिन्तनैः / मुश्चामि सर्बथाऽपीदं, यद्भाव्यं तद्भविष्यति // 8 // यद्वा किमत्र यद्भाव्यं ?, न भवत्येव मे स्मृतिः / को नाम राज्यमासाद्य, स्मरेच्चण्डालरूपताम् ? // 9 // एवं निश्चित्य तेनोक्ता, सद्बुद्धिः क्षालयस्व मे / भद्रे ! भाजनमेतत्त्वं, हित्वा सर्व कदन्नकम् // 10 // तयोक्तं पृच्छयतां तावद्धर्मबोधकरस्त्वया / काले न विक्रियां याति, सम्यगालोच्य यत् कृतम् // 11 // ततः सहैव सद्बुद्धया, धर्मबोधकरान्तिके / गत्वा सर्वोऽपि वृत्तान्तस्तेन तस्मै निवेदितः // 12 // साधु साधु कृतं भद्र !, धर्मवोधकरोऽब्रवीत् / केवलं निश्चयः कार्यों, येन नो यासि हास्यताम् // 13 // सोऽवादीत् किमिदं नाथा !, भूयो भूयो विकथ्यते / एष मे निश्चयस्तस्मिन्न मनोऽपि प्रवर्तते // 14 // ततोऽशेषजनैः सार्द्ध, पर्यालोच्य विचक्षणः / अत्याजयत्स तत्पात्रं, सज्जलैः पर्यशोधयत् // 15 // महाकल्याणकस्योच्चैस्तत् पुनः पर्यपूरयत् / प्रमोदातिशयात्तत्र, दिने वृद्धिमकारयत् // 16 // धर्मबोधकरो हृष्टस्तद्दया प्रददोधुरा / सद्बुद्धिवर्द्धितानन्दा, मुदितं राजमन्दिरम् // 17 // प्रवृत्तश्च जने वादो, योऽयं राज्ञाऽवलोकितः। धर्मबोधकरस्येष्टस्तइयापरिपालितः॥१८॥ सद्बुद्धयाऽधिष्ठितो नित्यमपथ्यत्यागकारकः / भेषजत्रयसेवित्वाद्रोगौधैर्मुक्तकल्पकः // 19 // स नो निष्पुण्यकः किन्तु, महात्मैष सपुण्यकः। ततस्तदैव संजातं, नामास्येति सपुण्यकः ॥२०॥त्रिभिर्विशेषकम् / कुतः पुण्यविहीनानां, सामग्री भवतीदृशी ? / जन्मदारिद्रयभाग् नैव, चक्रवर्तित्वभाजनम् // 21 // सद्बुद्धितद्दयायोगात्तिष्ठति८६ राजमन्दिरे / ततः प्रभृति यत्तस्य, संपन्नं तन्निबोधत // 22 // अपथ्याभावतो नास्ति, पीडा देहे परिस्फुटा / कचित्सूक्ष्माऽल्पकाला च, यदि स्यात्पूर्वदोषजा // 23 // ततः स्वयं गताकाक्षो, लोकव्यापारशून्यधीः / विधत्ते विमलालोकं, नेत्रयोरञ्जनं सदा // 24 // तत्त्वप्रीतिकरं तोयं, पिबत्यश्रान्तमानसः / महाकल्याणकं भुङ्क्ते, तत्सदनमनारतम् // 25 // ततो बलं धृतिः स्वास्थ्य, कान्तिरोजः प्रसन्नता / बुद्धिःपाटवमक्षाणां, वद्धतेऽस्य प्रतिक्षणम् // 26 // नाद्यापि सम्यगारोग्यं, वहुत्वाद्रोगसन्ततेः / जायते केवलं देहे, विशेषो दृश्यते महान् // 27 // यः प्रेतभूतः प्रागासीद्गाढं बीभत्सदर्शनः / स तावदेष संपन्नो, मानुषाकारधारकः // 28 // ये रोरभावे भावाः प्रागभ्यस्तास्तेन सन्ततम्८७ / तुच्छताक्लीबतालौल्यशोकमोहभ्रमादयः // 29 // त्रयोपभोगात्ते सर्वे, नष्टप्रायतया तदा / न बाधका मनाग् जातास्तेनासौ स्फीतमानसः // 30 // सत्त्रयी अन्यदाऽत्यन्तहृष्टात्मा, सदबुद्धि परिपृच्छति / भद्रे ! त्रयमिदं लब्धं, मयैतत् केन कर्मणा? // 31 // दानेच्छा तयोक्तं तात ! लभ्यन्ते, सर्वेऽर्थी दत्तपूर्वका:८८ / इति वार्ता जने तेन, दत्तमेतत् क्वचित्त्वया // 32 // ततः स चिन्तयत्येवं, वितीर्ण यदि लभ्यते / इदं सकलकल्याणकारणं भेषजत्रयम् // 33 // इदानी चारुपात्रेभ्यः, प्रयच्छामि विशेषतः। पुनर्जन्मान्तरे येन, संपद्यतेदमक्षयम् // 34 // तस्य चायमवष्टम्भो,८९ राजराजावलोकितः। धर्मबोधकरस्येष्टस्तदयापरिपूजितः॥ 35 // श्लाघितः सर्वलोकेन, सबुद्धेर्गाढवल्लभः / अहं सपुण्यकस्तेन, लोके वर्ते किलोत्तमः // 36 // युग्मम् // ततश्च यदि मां कश्चिदागत्य, प्रार्थयिष्यति मानवः / तदास्यामीति मन्वानो, दित्सुरप्येष तिष्ठति // 37 // अत्यन्तं निर्गुणोप्यत्र, महद्भिः कृतगौरवः / नूनं संजायते गर्वी, यथायं द्रमकाधमः // 38 // तत्र ये मन्दिरे लोकास्ते सर्वे त्रयभोजनाः। तद्वलादेव निश्चिन्ताः, संजाताः परमेश्वराः॥ 39 // 431-442 86 त्तिष्ठते प्र. 87 साम्प्रतम् प्र. 88 पूर्व दत्ताः 89 विचार