________________ तेनोत्कृष्टतमा राजभिदिष्टास्ते विचक्षणैः। ये चैवमनुतिष्ठन्ति, विरलास्ते जगत्त्रये // 8 // ततो भागवतं वाक्यमाकयेदं मनीषिणः। अभूञ्चेतसि सङ्कल्पस्तदानीं चारुचेतसः // 85 // अये भगवता यादृग्, वर्णितं स्पर्शनेन्द्रियम् / अत्यन्तविषमं लोंके, स्पर्शनास्तादृशः परम् // 86 // यतो बोधप्रभावेन, मम पूर्व निवेदितः / यथाऽन्तरङ्गनगरे, वास्तव्योऽयं महाबलः // 87 // तन्नूनं पुरुषव्याजसंस्थितं स्पर्शनेन्द्रियम् / अस्मान् प्रतारयत्येतदन्यथा कथमीदृशम् ? // 88 // तथा भगवताऽदिष्टां, ये चोत्कृष्टतमा नराः / कथितः स्पर्शनेनापि, भवजन्तुस्तथाविधः // 89 // तथाहि मां निराकृत्य, सदागमबलेन सः। सन्तोषानिवृति प्राप्त, इति तेन निवेदितम् // 9 // तस्मानास्त्यत्र सन्देहः, साम्प्रतं पुरुषत्रयम् / श्रुत्वाऽशेष विजानामि, यदत्र परमाक्षरम् // 91 // अयं हि भगवान् सूरिर्भुवनं सचराचरम् / ज्ञानालोकेन जानीते, सन्देहदलनः परम् // 92 // यावत्स चिन्तयत्येवं, साकूतो विस्मितेक्षणः / तावल्लक्षितचित्तेन, पृष्ठो मध्यमबुद्धिना // 93 // कथम् ?-मनीषिनितरां चित्ते, भावितस्त्वं विलोक्यसे / किमत्र भवता किश्चित्सतत्त्वमवधारितम् // 9 // मनीषिणोक्तं किं भ्रातर्भवता किं न लक्षितम् ? / किमेवं स्फुटबाक्येन, कथयत्यपि सन्मुनौ // 15 // अनेन हि समादिष्टं, यादृशं स्पर्शनेन्द्रियम् / वयस्यस्तावकस्तादृक्, स्पर्शनो नात्र संशयः // 96 // कथमेतत्ततः पृष्टे, पुनर्मध्यमबुद्धिना / आख्यातं कारणं तेन, निःशेषं तु मनीषिणा // 97 // बालस्तु पापकर्मत्वात्केवलं वीक्षते दिशः / अनादरपरस्तत्र, हितेऽपि वचने गुरोः // 98 // अथ राज्ञः समीपस्था, पिबन्ती वचनामृतम् / आचार्गीयं विशालाक्षी, राज्ञी मदनकन्दली // 99 // सा दृष्टा तेन बालेन, ततोऽस्य हृदि संस्थितम् / नूनं मे हृदयस्येष्टा, सेयं मदनकन्दली // 10 // यतोऽवदातमेतस्यास्तापनीयसमप्रभम् / शरीरं दर्शनादेव, मृदुतां सूचयत्यलम् // 101 // रक्तराजीवसच्छायं, विभाति चरणद्वयम् / अलक्षितसिराजालं, कूर्मोन्नतमनुत्तमम् // 102 // विभर्ति तोरणाकार, भवने माकरध्वजे / जङ्घायुग्मं स्वसौन्दर्यादेतस्यास्तेन राजते // 10 // मेखलायाः कलापेन, बद्धमन्मथवारणम् / नितम्बबिम्बमेतस्या, विशालममृतायते // 104 // भारेणैव वशीभूतो, विराजितवलित्रयः / एतस्या राजते मध्यो, रोमराजिविभूषणः // 105 // गम्भीरा सज्जनस्येव, हृदयं सुमनोहरा / राजते नामिरेतस्या सत्कामरसकूपिका // 106 // वहत्येषा स्तनौ वृत्तौ, पीवरौ कुम्भविभ्रमौ / उत्तुङ्गकठिनौ चारू, हृदयेन पयोधरौ // 107 // अन्यच्च धारयत्येषा, सुकुमारं मनोहरम् / पुण्यप्राग्भारसम्प्राप्यं, रम्यं बाहुलताद्वयम् // 108 // कराभ्यां निर्जितौ मन्ये, नूतनौ रागसुन्दरौ / एतस्याश्चारुरूपाभ्यां, रक्ताशोकस्य पल्लवी // 109 // दधत्यां पारिमाण्डल्यं, कन्धरायां सुवेधसा / कृतं रेखात्रयं मन्ये, त्रिलोकजयसूचकम् // 110 // अधरो विद्रुमच्छेदसभिभो भाति पेशलः / राजेते विलसद्दीप्ती, कपोलौ कोमलामलौ // 111 / / ये कुन्दकलिकाकारा, विलसत्किरणोत्कराः। एतस्या वदने दन्ता, भान्ति ते भुवनत्रये // 112 // सितासितं मुविस्तीर्ण, ताम्रराजिविराजितम् / पक्ष्मलं जनितानन्दमेतस्या लोचनद्वयम् // 113 // उत्तुङ्गो नासिकावंशो, भूलते दीर्घपक्ष्मले / अस्या ललाटमलकैः, कलितं बत राजते // 114 // अनुरूपं करोमीति, नूनं जातः प्रजापतेः / बहुमानो निजे चित्ते, कृत्वाऽस्याः श्रवणद्वयम् // 115 / / मालतीकुसुमामोदमोदितालिकुलाकुलः / अस्याः सुस्निग्धकुटिलः, केशपाशो विराजते // 116 // एतस्या मन्मथोल्लापानाकर्ण्य श्रुतिपेशलान् ।मन्ये खविस्वरत्वेन, लज्जिता किल कोकिला // 117 // बालस्य बालता