________________ ( ixviii ) और तारकों का उल्लेख उपलब्ध है परन्तु अभिधर्मकोश में नक्षत्रों का उल्लेख नहीं है। बौद्धों के अनुसार चन्द्र, सूर्य और तारक मेरु के चारों ओर भ्रमण करते हैं और उनकी गति युगन्धर के शिखर के समतल पर होती है / पुनः बौद्धों के अनुसार चन्द्रबिम्ब 50 योजन का एवं सूर्यबिम्ब 51 योजन का माना गया है। तारकों में सबसे छोटा विमान एक कोश परिमाण एवं सबसे बड़ा विमान 16 योजन का माना गया है। सूर्य के विमान के अधर और बाह्य में एक तेजस् चक्र होता है वहां चन्द्र विमान के अधर और बाह्य में एक आभा चक्र होता है / जिसके फलस्वरूप क्रमशः प्रकाश और ज्योत्स्ना होती है। जैनों की तरह बौद्धों में इनकी विस्तृत संख्या का उल्लेख नहीं मिलता है, बौद्ध परम्परा में मात्र यह कहा गया है कि चतुर्दीप में एक चन्द्र और एक सूर्य होता है। चन्द्रबिम्ब के विकल होने के कारणों के सम्बन्ध में जहाँ जैन-परम्परा इसकी विकलता का कारण राहु के विमान को मानती है, वहाँ बौद्ध परपरा चन्द्र-सूर्य विमान के सान्निध्य को ही इसका कारण मानती है। इनके अनुसार जब चन्द्र-विमान सूर्य-विमान के सान्निध्य में आता है तब सूर्य का आतप चन्द्र-विमान पर पड़ता है अतः ऊपर पार्श्व मे छाया पड़ती है और मण्डल विकल दिखाई देने लगता है। अभिधर्मकोश में कहा है कि चन्द्र का बाह्य योग ऐसा है कि चन्द्र कभी पूर्ण व कभी विकल दिखाई पड़ता है। यहीं पर दिन और रात्रि के घटने बढ़ने का कारण भी बताया गया है। इस प्रकार तुलनात्मक रूप से हम यह पाते हैं कि जैनों की सूर्य-चन्द्र आदि के गति की कल्पना और चन्द्रमा की विकलता में राहु के विमान को उत्तरदायी बताना यह प्राचीन काल की अवधारणा है। ज्योतिष्क देवों के ऊपर विमानवासी देवों की स्थिति मानी गई है। बौद्ध परम्परा के अनुसार कामधातु के विमानवासी देव चार प्रकार के माने गये हैं-याम, तुषित निर्माणरति और परनिर्मितवशवतिन / इस प्रकार कामावचरसुगतिभूमि के चातुर्माहाराजिक व त्रायस्त्रिशक ये दो भूमिवासो और शेष चार विमानवासा ये छः प्रकार माने गये हैं। इन्हें कामधातु देव इसलिए कहा गया है कि ये काम-वासना की संतुष्टि सामान्यतया विभिन्न उपायों से करते हैं / चातुर्माहाराजिक व त्रास्त्रिशक देव का मैथुन मनुष्यों के समान द्वन्द्व समापत्ति से होता है और शक का अभाव होने से वायु ही निर्गत कर परिदाह विगम करते हैं, शेष चार में से याम आलि