________________ देविदत्थो ( lxiv ) सुरगणसुहं समत्तं सव्वद्धापिडियं अणंतगुणं / न वि पावइ मुत्तिसुहं गंताहिं वग्गवग्गूहि // 298 // न वि अत्थि माणुसाणं तं सोक्खं न वि य सव्वदेवाणं / * जं सिद्धाणं सोक्खं अव्वाबाहं उवगयाणं // 299 // . सिद्धस्स सुहो रासी सव्वद्धापिंडिओ जइ हविजा / णंतगणवग्गभइओ सव्वागासे न माएज्जा // 300 // जह नाम कोइ मिच्छो नयरगुणे बहुविहे वियाणंतो। न चएइ परिकहेउं उवमाए तहिं असंतीए // 301 // इअ सिद्धाणं सोक्खं अणोवमं, नत्थि तस्स ओवम्म / किंचि विसेसेणित्तो सारिक्खमिणं सुणह वोच्छं // 302 // जह सव्वकामगुणियं पुरिसो भोत्तूण भोयणं कोई। तण्हा-छुहाविमुक्को अच्छिज्ज जहा अमियतित्तो // 303 // इय सव्वकालतित्ता अउलं निव्वाणमुवगया सिद्धा। सासयमव्वाबाहं चिट्ठति सुही सुहं पत्ता // 304 / / सिद्ध त्ति य बुद्ध ति य पारगय त्ति य परंपरगय त्ति / उम्मुक्ककम्मकवया अजरा अमरा असंगा य // 305 // निच्छिन्नसव्वदुक्खा जाइ-जरा-मरण-बंधणविमुक्का। 'सासयमव्वाबाहं अणुहुंति सुहं सयाकालं // 306 //