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________________ ( 12 ) आगमोंमें जो तत्त्व-विचार है वह तत्कालीन दार्शनिक विचार भूमिकासे सर्वथा अछूता रहा होगा इस बातका अस्वीकार करते हुए भी जैन अ श्रुतिके आधार पर इतना तो कहा जा सकता है कि जनआगमवर्णित तत्त्वविचारका मूल भगवान महावीरके समयसे भी पुराना है / जैन अनुश्रुतिके अनुसार भगवान् महावीरने किसी नये तत्त्वदर्शनका प्रचार नहीं किया है किन्तु उनसे 250 वर्ष पहले होनेवाले तीर्थङ्कर पाश्र्वनाथके तत्त्वविचार का ही प्रचार किया है। पार्श्वनाथ-सम्मत आचारमें तो भगवान महावीरने कुछ परिवर्तन किया है जिसकी साक्षी स्वयं आगम दे रहे हैं किन्तु पार्श्वनाथके तत्त्वज्ञानसे उसका कोई मतभेद जैन अनुश्रुतिमें बताया गया नहीं है / इससे हम इस नतीजे पर पहुंच सकते हैं कि जैन तत्त्व-विचारके मूल तत्त्व पार्श्वनाथ जितने तो पुराने अवश्य हैं / जैन अनुश्रुति तो इससे भी आगे जाती है। उसके अनुसार अपने से पहले हुए कृष्ण के समकालीन तीर्थङ्कर अरिष्टनेमिकी परम्परा को ही पार्श्वनायने ग्रहण किया था और स्वयं अरिष्टनेमिने प्रागैतिहासिक कालमें होने वाले नमिनाथ से। इस प्रकार वह अनुश्रुति हमें ऋषभदेव, जो कि भरत चक्रवर्तीके पिता थे, तक पहुँचा देती है / उसके अनुसार तो वर्तमान वेवसे लेकर उपनिषद् पर्यन्त संपूर्ण साहित्यका मूलस्रोत ऋषभदेव-प्रणीत जैनतत्त्वविचारमें ही है। इस जैन अनुश्रुतिके प्रामाण्यको ऐतिहासिक दृष्टिसे सिद्ध करना संभव नहीं है तो भी अनुश्रुतिप्रतिपादित जैनविचार की प्राचीनता में संदेह को कोई स्थान नहीं है / जैनतत्त्वविचार की स्वतन्त्रता इसी से सिद्ध है कि जब उपनिषदों में अन्य दर्शनशास्त्र के बीज मिलते हैं तब जैनतत्त्वविचारके बीज नहीं मिलते। इतना ही नहीं किन्तु भगवान् महावीरप्रतिपादित आगमोंमें जो कर्म विचार की व्यवस्था है, मार्गणा और गुणस्थान सम्बन्धी जो विचार है, जीवोंकी गति और आगति का जो विचार है, लोककी व्यवस्था और रचनाका जो विचार है, जड़ परमाणु पुद्गलों की वर्गणा और पुद्गलस्कन्ध का जो व्यवस्थित विचार है, षड्द्रव्य और नवतत्त्वका जो व्यवस्थित निरूपण है, उसको देखते हुए यह कहा जा सकता है कि जैनतत्त्वविचारधारा भगवान् महावीरसे पूर्वकी कई पीढ़ियोंके परिश्रमका फल है और इस धाराका उपनिषद प्रतिपादित अनेक मतोंसे पार्थक्य और स्वातंत्र्य स्वयंसिद्ध है।
SR No.004351
Book TitleAgam Yug ka Anekantwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJain Cultural Research Society
Publication Year
Total Pages36
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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