________________ 58 __ अणुत्तरोबवाइयदसासु [१६५“जइ णं, भन्ते,समणणं जाव संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं, भन्ते, अज्झयणस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं समजेणं जाव संपत्तेणं के अटे पन्नत्ते?" " एवं खलु, जम्बू” // 165 // तेणं कालेणं 2 रायगिहे नयरे रिद्धस्थिमियसमिद्धे, गुणसिलए चेइए, सेणिए राया, धारिणी देवी / सीहो सुमिणे, जाली कुमारो,जहा मेहो। अट्ठओ दाओ,जाव उपि पासाय जाव विहरइ / सामी समोसढे, सेणिओ निग्गओ / जहा मेहो तहा जाली वि निग्गओ। तहेव निक्खन्तो जहा मेहो / एक्कारस अङ्गाई अहिजइ / गुणरयणं तवोकम्मं / एवं जा चेव खन्दयवत्तव्यया सा चेव चिन्तणा, आपुच्छणा / थेरेहिं सद्धि विपुलं तहेव दुरुहइ / नवरं सोलस वासाइं सामष्णपरियागं पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा उडूं चन्दिम' सोहम्मीसाण जाव आरणञ्चुए कप्पे नव य गेवेजे विमाणपत्थडे उड्डूं दूरं वीइवइत्ता विजयविमाणे देवत्ताए उववन्ने // 166 // तए णं ते थेरा भगवन्तो जालिं अणगारं कालगयं जाणित्ता परिनिव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेन्ति, 2 पत्तचीवराई गिण्हन्ति, तहेव ओयरन्ति जाव इमे से आयारभण्डए॥१६७॥ “भन्ते" त्ति भगवं गोयमे जाव एवं वयासी-" एवं खलु देवाणुप्पियाणं अन्तेवासी जाली नामं अणगारे पगइ. भद्दए...। से णं जाली अणगारे कालगए कहिं गए, कहिं उववन्ने ?" “एवं खलु, गोयमा। ममं अन्तेवासी, तहेव जहा खन्दयस्स जाव, कालगए उड्ढे चन्दिम जाव विजए विमाणे देवत्ताए उववन्ने”॥१६७॥ .