________________ 4) 'नेष्यन्दि की च सत्वाख्या निष्यन्दोपात्तभूतजा समाधिजोपचयिकानुपात्ताभिन्न भूतजा // 6 // नाव्याकृतास्त्यं विज्ञप्ति स्त्रिधान्यद शुभं पुन: कामे रूपेऽप्यविज्ञप्तिर्वितप्तिः सविचारयोः // 7 // कामेऽपि निवृता नास्ति समुत्थानमस यत:। परमाशुभो मोक्षः स्वतो मुल ह्यपत्रपाः / / 8 / / सं प्रयोगेण तद्युक्ताः समुत्थानाक्रियादयः। विपर्ययेणाकुशलं परमाव्याकृते // 9 // समुत्थानं विधा हेतुतत्क्षणोत्थान संज्ञितम् | प्रवर्तकं तयोरायं द्वितीयमनुवर्तकम् // 1 // प्रवर्तकं दृष्टिहेयं वितानमुभयं पुनः। 'मानसं भावना हेयं पंचकं त्वनुवर्तकम् // 19 // "प्रवर्तके भादौ हि स्यानिधाप्यनुवर्तकम् | तुल्यं मुने: शुभं वापन्नोभयं तु विपाकजम् // 13 // अवितप्तिस्त्रिधा सेया संवरा संवरेतरा - संवरः प्रतिमोआख्यो ध्यानजो ऽनाश्रवस्तथा।।१३॥ अबधा प्रतिमोआरव्यो व्यतस्तु चतुर्विधः। लिंगतो नामसंचारात पृषक ते चार विरोधिनः // 14 //