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________________ तत्त्वसार 65 भवन्ति ? जीवस्य। केन नयेन ? अनुपचरितासद्भूतव्यवहारेण / 'णोकम्म-कम्मणादी पज्जाया विविहभेयगया' नोकर्म शरीरादीनि, कर्माणि ज्ञानावरणादीन्यष्टौ, त एव पर्याया विविधभेदगताः संसारावस्थायां जीवस्य भणिताः कथिताः। यद्यपि असिद्धात्मनो व्यवहारनयेनाभिन्नान् यान् पूर्वोक्तकर्मजनितान् भावांस्तथापि निश्चयनयेन परमात्मनो भिन्नान् हेयभूतांस्तान् जानीहि हे भव्यजनेति भावार्थः // 22 // अथात्मनः कर्मणां च संयोगविशेषं दृष्टान्तद्वारेण सूत्रकारो द्रढयतिमुलगाथा-संबंधो एदेसि णायन्वो खीर-णीरणाएण / ____एकत्तो मिलियाणां णिय-णियसब्भावजुत्ताणं // 23 // संस्कृतच्छाया--सम्बन्ध एतयोः ज्ञातव्यः क्षीर-नीरन्यायेन / ____एकत्वं मिलितयोः निज-निजसद्भावयुक्तयोः // 23 // टीका-संबंधो एदेसि' इत्यादि-पदखण्डनारूपेण टीकाकारो व्याख्यानं करोति-एतयो|व-कर्मणोः सम्बन्ध विवेकिभितिव्यो भवति / कथम् ? सहजातक्षीर-नीरयोरिव न्यायेन लोक आर्गे आत्माकू भिन्न दिखावे हैं भा० व०-जे जीव कम तिनिका संबंध है सो संबंध. जाननँवारे विवेकोनिकू जानना जोग्य है-साथि उत्पन्न भया दूध-जलका न्यायकी नाई लोक प्रसिद्ध मार्गकरि अनुपचरित असद्भत व्यवहार बलात् कहिए बलं एकपणाकरि मिला निज निज स्वभाव गुणयुक्त जीव कर्मनिके चेतना अचेतना गुणयुक्तनिक जीव अजीव द्रव्य जे दोय या प्रकार। तथापि शुद्धनिश्चयनयकरि ते जीव पुद्गल दोन्यों ही आप आपकै गुण चेतना अचेतनादिकनिकू नाहीं त्यजे हैं, आत्मा ज्ञानकू नांहीं छोड़े है, अर चेतना-रहितपुद्गल अचेतनपनांकू नाहीं त्यजै है // 23 / / * भाव, ये सभी पर्याय अनुपचरित-असद्भूत व्यवहारनयसे जीवके होते हैं। ‘णोकम्म-कम्मणादी पज्जाया विविहभेयगया, अर्थात् शरीरादिक नोकर्म और ज्ञानावरणादि आठ कर्मरूप अनेक भेदगत पर्याय संसार-अवस्थामें जीवके कही गई हैं। यद्यपि असिद्ध (संसारी) आत्माके पूर्वोक्त कर्म-जनित जिन भावोंको व्यवहारनयसे अभिन्न कहा गया है, तथापि निश्चयनयसे वे परम शुद्ध सिद्धात्मासे भिन्न हैं, अतः हे भव्यजनो, तुम उन्हें हेयभूत अर्थात् छोड़नेके योग्य जानो। यह इस गाथाका भावार्थ है // 22 // अब सूत्रकार देवसेनाचार्य आत्मा और कर्मोंके संयोगविशेषको दृष्टान्त-द्वारा दृढ़ करते हैं ___ अन्वयार्थ-(णिय-णियसब्भावजुत्ताणं) अपने अपने सद्भावसे युक्त, किन्तु (एकत्तो मिलियाणं) एकत्वको प्राप्त (एदेसिं) इन जीव और कर्मका (संबंधो) सम्बन्ध (खीर-णीरणाएण) दूध और पानीके न्यायसे (णायव्वो) जानना चाहिए। ____टोकार्थ-'संबंधो एदेसिं' इत्यादि गाथाका टीकाकार व्याख्यान करते हैं-दो द्रव्योके संयोग-सम्बन्धके ज्ञाता विवेकी जनोंको इन जीव और कर्मोका सम्बन्ध जन्म-जात दूध-पानीक
SR No.004346
Book TitleTattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Siddhantshastri
PublisherSatshrut Seva Sadhna Kendra
Publication Year1981
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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