________________ तत्वसार प्रसिद्धमार्गेण / 'एकत्तो मिलियाणां णिय-णियसम्भावजुत्ताणं' अनुपचरितासद्भूतव्यवहारबलादेकत्वं मिलितयोः निज-निजस्वभावगुणयुक्तयोश्चेतनाचेतनगुणयुक्तयोः जीवाजीवद्रव्ययोद्धयोरिति / तथापि शुद्धनिश्चयनयेन ते वे अपि स्वकीयं गुणं चेतनादिकं न त्यजतः / इति मत्वा सहजानन्दैकरूप-स्व-परप्रकाशकचिद-गणचकचकायमाननिजात्मनि भावना कर्तव्येति पण्डितैः / कः पण्डितः ? विवेकोति तात्पर्यार्थः // 23 // अथ स्व-परयो दं दृष्टान्तेन दर्शयतिमूलगाथा- जह कुणइ को वि भेयं पाणिय-दुद्धाण तक्कजोएणं / णाणी वि तहा भेयं करेइ वरझाणजोएणं // 24 // संस्कृतच्छाया-यथा करोति कोऽपि भेदं पानीय-दुग्धयोस्तर्कयोगेन / मानो अपि तथा भेदं करोति वरध्यानयोगेन // 24 // भा० व०-'आगें ज्ञानी स्व-परका भेद कैसे करे, सो कहै हैं जैसे कोऊ पुरुष तर्कके योगसे पानी और दूध कू जुदा जुदा करे है, तैसे ही ज्ञानी पुरुष हूँ वर कहिए उत्तम ध्यानके बलकरि स्व-परका भेद करे है // 24 // समान न्यायसे अर्थात् लोक-प्रसिद्ध मार्गसे भिन्न-भिन्न जानना चाहिए / 'एकत्तो मिलियाणं णियणियसब्भावजुत्ताणं' अर्थात् अनुपचरित-असद्भूत व्यवहारनयके बलसे एकत्वरूपसे मिले हुए और अपने-अपने स्वाभाविक गुणसे अर्थात् चेतन-अचेतन गुणसे युक्त-जीव और अजीव इन दोनों द्रव्योंका संयोग सम्बन्ध है, तथापि शुद्ध निश्चयनयसे वे दोनों ही अपने-अपने गुण चेतनत्व और अचेतनत्वको नहीं छोड़ते हैं। ऐसा मानकर सहजानन्दी, एकरूप, स्व-पर-प्रकाशक, चिद्-गुणसे चकचकायमान (प्रकाशमान या चमकते हुए) अपने आत्मामें पंडितजनोंको भावना करनी चाहिए। यह इस गाथाका तात्पर्यार्थ है // 23 // प्रश्न-पंडित कौन कहलाता है ? उत्तर-जो सत् और असत्का या स्व-परका विवेकी है। अब सूत्रकार स्व-परके भेदको दृष्टांत-द्वारा दिखलाते हैं अन्वयार्थ-(जह) जैसे (को वि) कोई पुरुष (तक्कजोएण) तर्कके योगसे (पाणिय-दुद्धाण) पानी और दूधका (भेयं) भेद (कुणइ) करता है, (तहा) उसी प्रकार (णाणी वि) ज्ञानी पुरुष भी (वर-झाणजोएणं) उत्तम ध्यानके योगसे (भेयं) चेतन और अचेतनरूप स्व-परका (भेयं) भेद (करेइ) करता है। 1, क्यावर भवनको प्रतिमें गाथा 24 और उसका अर्थ नहीं है / हमने उसी भाषामें बना करके लिखा है / '-सम्पादक