________________ तृतीयं पर्व स्वगततत्त्वमिदं शिवसौल्यवं परमसाधुजनेहितसत्पवम् / अमरसिंहसलक्ष्मण भावय त्वमिह चात्मनि मुक्तिसुखेप्तितम् // 1 // इत्याशीर्वादः। अथानुपचरितासद्भूतव्यवहारेण कर्म-नोकर्मादिभावास्तस्यात्मन: सन्तीति मनसि धृत्वा सूत्रमिदं सूत्रकारः प्रतिपादयतिमूलगाथा-अत्थि त्ति पुणो भणिया णएण ववहारिएण ए सव्वे / __णोकम्म-कम्मणादी पज्जाया विविहभेयगया // 22 / / संस्कृतच्छाया-सन्तीति पुनः भणिताः नयेन व्यावहारिकेनते सर्वे / नोकर्म-कर्मादयः पर्यायाः विविधभेदगताः // 22 // ___टीका-'अत्थित्ति पुणो भणिया गएण ववहारिएण ए सव्वे' इत्यादि-पदखण्डनारूपेण टोकाकारो मुनिः श्रीकमलकोतिर्विवृणोति-पुनः सन्तीति भणिताः प्रोक्ताः / के ? ते कला-संस्थानमार्गणादयः पूर्वोक्ता ये, वक्ष्यमाणास्तु कर्म-नोकर्मजनितभावाः, एते सर्वेऽपि पर्यायाः। कस्य यह स्वगततत्त्व शिव-सुखका दाता है, परम श्रेष्ठ साधुजन भी इस सत्पदकी इच्छा करते हैं। इसलिए हे लक्ष्मण-सहित अमरसिंह, यदि तुम इस लोकमें अपने भीतर मुक्तिसुखकी इच्छा करते हो, तो इस स्वगततत्त्वकी भावना करो // 1 // ... (इति आशीर्वादः) भा० व०-बहुरि व्यवहारनयकरि कला संस्थान मार्गणादिक पूर्वं कह्या, अर कथ्यमान कर्म नोकर्मनि उत्पन्न भये एते सर्व ही पर्याय कौनक द्रोय हैं. अर कौन नयकरि? अन असद्भूत व्यवहारकरि नोकर्म तो शरीरादिक, अर कर्म ज्ञानावरणादि आठ ते ही पर्याय नाना भेदनि कू प्राप्त भये संसार अवस्थाविर्षे जीवकै कह्या / यद्यपि स्वशुद्धात्मा व्यवहारनयकरि अभिन्न ये जे पूर्वोक्त कर्म-जनित भाव हैं, तो भी निश्चयनय करि परमात्मा भिन्न अर हेयभूत त्यागने योग्य हैं, हे भव्य तू जानि // 22 // अब अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनयसे कर्म-नोकर्मादि भाव इस आत्माके हैं, यह बात मनमें रखकर सूत्रकार श्री देवसेन इस वक्ष्यमाण गाथासूत्रको कहते हैं - अन्वयार्थ (पुणो) पुनः (ववहारिएण णएण) व्यावहारिक नयसे (विविहभेयगया) अनेक भेद-गत (ए सव्वे) ये सर्व (णोकम्मकम्मणादी) नोकर्म और कर्म-जनित (पज्जाया) पर्याय (अत्थित्ति) जीवके हैं, ऐसा (भणिया) कहा गया है। ____टोकार्थ–'अत्थित्ति पुणो भणिया' इत्यादि गाथाका टीकाकार मुनि श्रीकमलकीत्ति विवरण करते हैं-पूर्वमें कहे गये कला, संस्थान और मार्गणादिक, तथा वक्ष्यमाण कर्म-नोकर्म-जनित