________________ तत्त्वसार मूलगाथा-फास रस रूव गंधा सद्दादीया य जस्स पत्थि पुणो / सुद्धो चेयणभावो णिरंजणो सो अहं भणिओ // 21 // . संस्कृतच्छाया- स्पर्श-रस-रूप-गन्धाः शब्दादिकाश्च यस्य न सन्ति पुनः। शुद्धश्चेतनभावो निरञ्जनः सोऽहं भणितः॥२१॥ ... टीका-'फास' इत्यादि / पदखण्डनारूपेण श्रीकमलकीत्तिमुनिना व्याख्यानं क्रियत इति सर्वत्र ज्ञातव्यम। 'फास' शीतोष्णनगर-लघ-मद-कठिन-स्निग्ध-रुक्षा इत्यष्टप्रकारः स्पर्शः स्पर्शनेन्द्रिगोचरः / 'रस' मधुर-कटुकाम्ल-तीक्ष्ण-कषाया इति पञ्चविधो रसो रसनेन्द्रियविषयः / 'रूप' श्वेतपोत-रक्त-कृष्ण-हरितवर्णा इति चक्षुरिन्द्रियगोचरः पञ्चधा रूपः / 'गंध' सुरभिरूपोदुरभिरूपश्चेति द्विप्रकारो घ्राणेन्द्रियविषयो गन्धः। 'सहादीया य जस्स णत्यि पुणों' निषावर्षभ-गान्धार-षड्ज बहुरि शुद्ध आत्मा ही का लक्षण कहै हैं भा० व० सो मैं हूँ कह्या निरंजन ऐसा / बहुरि आठ स्पर्श जाकै नांहीं, ताता ठंडा हलका भारी लूखा चिकनां, नरम कठोर, ए आठ स्पर्श नाहीं। अर पांच रस हू नाहीं / खाटा मीठा कड़वा कसायला चिरपरा / अर गंधके दोय भेद-सुगंधता दुर्गंधता / अर रूपका पांच काला धोला पीला लाल हरिया : ए नांहीं / शब्दका विषय सात-षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद य सात स्वरभेद हैं नाहीं। तो कहा है ? शुद्ध है, अर चेतनाभाव है। भावार्थ-चार इंद्रियका बीस विषय अर कर्णइंद्रियका सात ये पुद्गल द्रव्यका गुण हैं। शब्दादिक पुद्गल-पर्याय जे हैं सो हैं। यद्यपि उपचाररूप सद्भूतार्थ नयकरि तो आत्माके हैं, तथापि शुद्ध निश्चयकरि पुद्गलके हैं / अर आत्मा नांहीं। संसारका मूलभूत राग द्वेष मोहादिक रहितपणां तें अर केवलज्ञानादि अनंत गुण सहितपणातें शुद्ध है। अर 'चिती संज्ञाने' धातुका प्रयोग यो है-चेत जाकरि करिये, या प्रकार स्व-पर वस्तुस्वरूप चेतना। अर 'भू सत्तायां' धातुका स्वशक्तिकरि आप ही होय सो भाव कहिए चेतना ही है भाव जाका सो चेतनभाव कहिए / अर गया है ज्ञानावरणादिक आठ कर्म-मलत उत्पन्न भया अंजन पापरूप मेल जिसके नांहीं ऐसा निरंजन मैं हूँ, ऐसा कह्या है // 21 // अब उस शुद्ध निरंजन आत्माका और भी स्वरूप वर्णन करते हैं अन्वयार्थ-(पुणो) और (जस्स) जिसके (फास-रस-रूव-गंधा) स्पर्श, रस, गन्ध, रूप (सद्दादीया य) और शब्द आदिक (पत्थि) नहीं हैं (सो) वह (सुद्धो) शुद्ध (चेयणभावो) चेतनभावरूप (अहं) मैं (निरंजणो) निरंजन (भणिओ) कहा गया हूँ। ___टोकार्थ-'फास-रस' इत्यादि गाथाका श्रीकमलकीत्ति मुनि अर्थ-व्याख्यान करते हैं, यह सम्बन्धरूप अर्थ सर्वत्र जानना चाहिए। 'फास' नाम स्पर्शका है / वह आठ प्रकारका है-शीत, उष्ण, गुरु, लघु, मृदु, कठिन, स्निग्ध और रूक्ष / यह आठों प्रकारका स्पर्श स्पर्शनेन्द्रिय का विषय है। 'रस' मधुर, कटुक, आम्ल, तीक्ष्ण (तिक्त) और कषाय यह पांच प्रकार का रस रसनेन्द्रियका विषय है / 'रूव' श्वेत, पीत, रक्त, कृष्ण और हरित वर्णरूप पांच प्रकार का रूप चक्षुरिन्द्रियका विषय है / 'गंध' सुरभिरूप और दुरभिरूप दो प्रकारका गन्ध घ्राणेन्द्रियका विषय है / 'सदादीया