________________ तत्त्वसार द्विपञ्चाशल्लक्षजातयो भवन्ति 5200000 / 23 / सार्षनवनवत्यधिकशतकोटिकुलमध्ये सप्तषष्ठिकोटिकुलानि भवन्ति पृथिव्यादीनां 24 / इति चतुर्विशतिस्थानगतैकेन्द्रियजातिर्वणिता। अथ तथैव द्वीन्द्रियजातिः कथ्यते। तद्यथा-गतिरेका ति यंग भवति ।जातिरपि द्वीन्द्रियाख्यैका 2 / काय एकस्त्रसकायः३। योगाः 4 औदारिकोदारिकमिधकार्मणवचनरूपाः 4 / वेद एको नपुंसकम् 5 / कषायाः 23 षोडश कषायाः 16 नोकषायाः 6 हास्यावयो नपुंसकं च 6 / ज्ञाने कुमतिकुश्रुती / 7 / संयममध्ये एकोऽसंयमो भवति / दर्शनमध्येऽचक्षुरेकम् 9 / लेश्यामध्ये कृष्णाद्यास्तिस्त्र. 10 / भव्याभव्यो वो भवतः 11 / सम्यक्त्वमध्ये मिथ्यात्वमेकम् 12 / संज्यसंज्ञिमध्येऽसंज्ञि 13 / आहारकानाहारकमध्ये आहारकमेकम् 14 / गुणस्थानं प्रथममेकम् 15 / जीवसमासमध्ये द्वीन्द्रियजीवसमासो भवति 16 / पर्याप्तिपश्नकं मनो विना 17 / प्राणाः षट्वे इन्द्रिये काय वचनोच्छवासायुष्कानि 18 / संज्ञाः सर्वाः 19 / उपयोगमध्ये उपयोगत्रयम् 20 / ध्यानाष्टकं तदेव 21 / प्रत्ययमध्ये चत्वारिंशत्प्रत्ययाः-मिथ्यात्व 5 असंयम 8 कषाय 23 यागाख्याः 4 / 22 / जातिमध्ये द्वीन्द्रियस्य लक्षद्वयम् 200000 / 23 / कुलमध्ये सप्तकुलकोटयो भवन्ति 24 / इति द्वीन्द्रियजातिः 2 / ... अथ श्रीन्द्रियजातिया॑वय॑ते / तथाहि-त्रीन्द्रियजातो गतिचतुष्टयमध्ये तिर्यग्गतिरेका भवति 1 / जातिपञ्चकमध्ये श्रीन्द्रियजातिः 2 / कायद्वयमध्ये त्रसकायो भवति 3 / योगमध्ये बन्धप्रत्यय होते हैं 22 / चौरासी लाख जातियोंमेंसे बावन लाख 5200000 जातियां होती हैं 23 / एकसौ साढ़े निन्यानवे लाख कुलकोटियोंमेंसे पृथिवीकायादिक एकेन्द्रियोंके सड़सठ कोटि कुल होते हैं 24 / इस प्रकार चौबीस स्थानगत एकेन्द्रियजातिका वर्णन किया। अब इसी प्रकारसे द्वीन्द्रियजातिका वर्णन करते हैं। यथा-दीन्द्रिय जातिमें एक तिर्थग्गति ही होती है 1 / द्वीन्द्रियनामक एक ही जाति होती है 2 / त्रस नामक एक काम होता है। औदारिक, औदारिकमिश्र, कार्मण और वचनरूप चार योग होते हैं / वेद एक नपुंसक होता है 5 / पच्चीस कषायोंमेंसे सोलह कषाय, हास्यादि छह नोकषाय और एक नपुंसक वेद ये तेईस कषाय होती हैं .6 / कुमति और कुश्रुत ये दो ज्ञान होते हैं 7 / संयमोंमेंसे एक असंयम होता है / दर्शनोंमेंसे एक अचक्षुदर्शन होता है 9 / लेश्याओंमेंसे कृष्णादि तीन अशुभ लेश्याएं होती हैं 10 / भव्यमार्गणामेंसे भव्य और अभव्य दोनों होते हैं 11 / सम्यक्त्वमार्गणामेंसे एक मिथ्यात्व होता है 12 / संज्ञिमार्गणामेंसे एक असंज्ञिपना होता है 13 / आहारक-अनाहारकमेंसे एक आहारकपना होता है 14 / गुणस्थान एकमात्र पहिला होता है 15 1 जीवसमासोंमेंसे द्वीन्द्रिय जीवसमास होता है 16 / मनके बिना पांच पर्याप्तियां होती हैं 17 / आदिकी दो इन्द्रियां, कायबल, वचनबल, उच्छ्वास और आयु ये छह प्राण होते हैं 18 / संज्ञाएं सभी होती हैं 19 / उपयोगोंमेंसे तीन उपयोग होते हैं 20 / ध्यानोंमेंसे अशुभ आठ ध्यान होते हैं 21 / बन्ध-प्रत्ययोंमेंसे मिथ्यात्व 5, असंयम 8, कषाय 23 और योग. 4 ये सब चालीस बन्धप्रत्यय होते हैं 22 / जातियोंमेंसे द्वीन्द्रियकी दो लाख 200000 जातियां होती हैं 23 / कुलकोटियोंमेंसे सात करोड़ कुलकोटियां होती हैं 24 / इस प्रकार द्वीन्द्रिय जातिका वर्णन किया / अब त्रीन्द्रियजातिका वर्णन करते हैं। यथा-त्रीन्द्रियजातिमें चार गतियोंमेंसे एक तिर्यगति है 1 / पांच जातियोंमेंसे एक त्रीन्द्रिय जाति है 2 / दोकायमेंसे एक त्रसकाय है 3 / पन्द्रह