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________________ तत्वसार जघन्यायुस्त्रिसागरोपमप्रमाणम् 3 / उत्कृष्टं सप्तसागरोपमप्रमाणम् 7 / जघन्योत्सेषः पञ्चदश धषि 15 वो हस्तौ द्वादशाङ्गुलानि 12 / उत्कृष्ट उत्सेघस्तद्विगुणः धषि 31, हस्तः१। कोशास्त्रयोऽवविभवेत्। अथ तृतीयरज्जूमध्ये पङ्कप्रभायां चतुर्वभूमौ बिलानि दशलक्षाः 1000000 / एतेषां मध्ये इन्द्रकसंज्ञानि सप्त / श्रेणीवसानि सप्त शतानि 700 / अन्यानि पुष्पप्रकोणकमिश्रसंज्ञानि 999293 / नीललेश्या मध्यमांशा / जघन्योत्सेषः स एव पूर्वोक्तः / उत्कृष्टोत्सेको धनूंषि 62 हस्त 2 / जघन्यायुः पूर्वोक्तम् / उत्कृष्टं दशसागरोपमम् 10 / सापकोशद्वयमवषिर्भवेत् / इति चतुर्थनरकभूमिः 4 / अथ चतुर्थरज्जूमध्ये धूमप्रभायो पञ्चमभूमौ बिलानि तिम्रो लक्षाः 300000 / एतेषां मध्ये पश्नेन्द्रकाः 5 / श्रेणीपदानि पष्टपषिके द्वे शते 260 / उद्धरितानि मिश्ररूपाणि 299735 / नीललेश्योत्कृष्टांशा कृष्णलेश्या जपाया। जघन्योत्सेषः स एव पूर्वोक्तः। उत्कृष्टोत्सेधो धषि 125 / जघन्यमायुः पूर्वोक्तमेव / उत्कृष्टमायुः ( सप्तवश सागरोपमम् 17 / कोशद्वयमवधिर्भवेत् / इति पञ्चमनरकभूमिः 5) (अथ पञ्चमरज्यमन्चे तमनभायां पठभूमों विलानि पत्रोमेकलक्षाः 99995 / एतेषां मध्ये त्रय इन्द्रकाः३। श्रेणिबहानि पष्ठी 60 / उरितानि मिषरूपाणि 9993 / मध्यमा है / यहांके नारकियोंकी जघन्य आयु तीन सागरोपम प्रमाण है. 3 / तथा उत्कृष्ट आयु सात सागरोपम प्रमाण है 7 / यहांके नारकियोंके शरीरकी जघन्य ऊंचाई पन्द्रह धनुष 15 दो हाथ 2, और बारह अंगुल 12 प्रमाण है। उत्कृष्ट ऊंचाई इससे दुगुनी अर्थात् 31 धनुष और 1 हाथ प्रमाण है। यहांके नारकियोंका अवधिज्ञान तीन कोश प्रमाण है। _अब तीसरी राजुके मध्यमें पंकप्रभानामकी जी चौथी नरकभूमि है उसमें दश लाख बिल . हैं 1000000 / इनके मध्यमें सात इन्द्रक बिल हैं / श्रेणीबद्ध बिल सातसौ हैं 700 / अन्य पुष्प- . प्रकीर्णकमिश्रसंज्ञावाले बिल नौ लाख निन्यानवे हजार दो सौ तिरानवे 999293 हैं। यहांके नारकियोंके नीललेश्याका मध्यम अंश है / शरीरकी जघन्य ऊंचाई वही पूर्वोक्त 31 धनुष 1 हाथ प्रमाण है तथा उत्कृष्ट ऊंचाई 62 धनुष और 2 हाथ प्रमाण है / जघन्य. आयु पूर्वोक्त सात सागरोपम प्रमाण है और उत्कृष्ट आयु दस सागरोपम प्रमाण है 10 / यहांके नारकियोंका अवधिज्ञान ढाई कोश प्रमाण है / इस प्रकार चौथी नरक भूमिका वर्णन किया 4 / अब चौथी राजुके मध्यमें जो धूमप्रभा नामकी जो पांचवीं नरकभूमि है उसमें बिल तीन लाख हैं 300000 / इनके मध्यमें पांच इन्द्रक बिल हैं / श्रेणीबद्ध बिल साठ अधिक दो सौ 260 हैं / शेष मिश्ररूप बिल दो लाख निन्यानवे हजार सात सौ पैंतीस 299735 हैं / यहांके नारकियोंके नील लेश्याका उत्कृष्ट अंश और कृष्णलेश्याका जघन्य अंश है। शरीरकी जघन्य ऊंचाई वही पूर्वोक्त 62 धनुष 2 हाथ प्रमाण है और उत्कृष्ट ऊंचाई एक सौ पच्चीस 125 धनुष प्रमाण है। जघन्य आयु पूर्वोक्त दश सागरोपमप्रमाण है और उत्कृष्ट आयु सत्रह 17 सागरोपमप्रमाण है। यहांके नारकियोंका अवधिज्ञान दो कोश प्रमाण है। इस प्रकार पांचवीं नरक भूमिका वर्णन किया 6 / अब पांचवीं राजुके मध्यमें जो तमःप्रभा नामकी छठी भूमि है उसमें पांच कम एक लाख 99995 बिल हैं। इनके मध्यमें तीन इन्दुक बिल हैं। श्रेणीबद्ध बिल साठ 60 हैं। शेष मिश्ररूप
SR No.004346
Book TitleTattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Siddhantshastri
PublisherSatshrut Seva Sadhna Kendra
Publication Year1981
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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