________________ तत्त्वसार कृष्णलेश्या / जघन्योत्सेधः स एवं पूर्वोक्तः। उत्कृष्टोत्सेधः धषि 250 / जघन्यमायुःप्रमाणं पूर्वोक्तमेव / उत्कृष्टमायुः द्वाविंशतिसागरोपमम् 22 / साधकोशमवधिर्भवेत् इति षष्ठनरकभूमिः 6) (अथ षष्ठरज्जूमध्ये महातमःप्रभायां सप्तमभूमौ विलानि पंच 5 / एतेषां मध्ये इन्द्रकः 1 / श्रेणीबद्धानि 4 / उत्कृष्टा कृष्णलेश्या। जघन्योत्सेधः स एव पूर्वोक्तः / उत्कृष्टोत्सेषः षषि 500 / जघन्यमायुःप्रमाणं) पूर्वोक्तमेव / त्रयस्त्रिशत्सागरोपमप्रमाणमुत्कृष्टमायुः / तेषामवषिरेकः क्रोशः / इति सप्तमं नरकवर्गनं समाप्तम्। अथ सप्तमरज्जूमध्ये निगोदास्तिष्ठन्ति वातवलयत्रयंपर्यन्तम् / तेषां नारकाणां पञ्चचप्रकाराणि क्षेत्रोदभव-शरीर-वचनोदभव-मानसिकासरोदीरितलक्षणानि"ःखानि भवन्ति / तीव्रपापकर्मोदयाच्च चतुर्थपर्यन्त-सम्बन्धिनां नारकाणामुष्णवेदना स्यात्। पञ्चमनरकद्विभागयोंरुष्णवेदना, तृतीयभागे शीतवेदना केवला / षष्ठ-सप्तमनरकयोरत्यन्तशीतवेदना जायतेतराम्। ‘पञ्चेन्द्रियासंज्ञिनो जीवा मृताः सन्तः प्रथमनरके यान्ति / द्वितीयनरके पारटाः (सरीसृपाः) यान्ति / पक्षिणस्तृतीये / सर्पोरुगाश्चतुर्थे गच्छन्ति / सिंहाः पञ्चम्यां यान्ति / षष्ठयां भूमौ पापाः बिल निन्यानवै हजार नौ सौ पैंतीस 99935 हैं। यहांके नारकियोंके - मध्यम कृष्ण लेश्या है। शरीरकी जघन्य ऊंचाई वही पूर्वोक्त 125 धनुष प्रमाण है और उत्कृष्ट ऊंचाई 250 धनुष है। जघन्य आयुका प्रमाण पूर्वोक्त सत्रह सागरोपम 17 है / उत्कृष्ट आयु बाईस सागरोपमप्रमाण है 22 / यहांके नारकियोंका अवधिज्ञान डेढ़ कोश प्रमाण है। इस प्रकार छठी नरक भूमिका वर्णन किया 6 / . अब छठी राजुके मध्यमें महातमःप्रभा नामकी जो सातवीं नरकभूमि है उसमें केवल पांच बिल हैं 5 / इनमेंसे एक इन्द्रक बिल है और चार श्रेणीबद्ध बिल हैं / यहांके नारकियोंके उत्कृष्ट कृष्ण लेश्या होती है। शरीरकी जघन्य ऊंचाई वही पूर्वोक्त 250 धनुष है और उत्कृष्ट ऊंचाई 500 धनुष प्रमाण है / जघन्य आयु-प्रमाण पूर्वोक्त 22 सागरोपम है और उत्कृष्ट आयु तेंतीस सागरोपमप्रमाण है। वहांके नारकियोंका अवधिज्ञान एक कोश प्रमाण है। इस प्रकार सातवीं नरकभूमिका वर्णन समाप्त हुआ। . इसके नीचे सातवीं राजुके मध्यमें तीनों वातवलयों पर्यन्त सर्वत्र एकेन्द्रिय निगोदिया जीव रहते हैं। ऊपर कही गई नरकभूमियोंमें रहनेवाले नारकियोंके पांच प्रकारके दुःख होते हैं-१ क्षेत्रजनित, 2 शारीरिक, 3 वचन-जनित, 4 मानसिक और 5 असुरकुमारोदित / तीव्र पापकर्मके उदयसे चौथी पृथ्वी तकके नारकियोंके उष्णवेदना होती है। पांचवीं नरकभूमिके आदिके दो भागोंमें उष्णवेदना और तीसरे भागमें केवल शीतवेदना होती है / छठी और सातवीं नरकभूमिमें अत्यन्त शीत वेदना होती है। पंचेन्द्रिय-असंज्ञी जीव मरण करते हुए प्रथम नरकमें जाते हैं / शरट (सरीसृप) दूसरे नरकमें जाते हैं। पक्षी तीसरे नरकमें जाते हैं / फणवाले सांप-उरग चौथे नरकमें जाते हैं / सिंह पांचवीं