________________ 48 तत्त्वसार टीका-णस्थि कलासंठाण' इत्यादि, पदखण्डनारूपेण भट्टारकधीकमलकीतिना विशेषव्याख्यानं क्रियते / तद्यथा-तस्य जीवस्येत्यध्याहारः क्रियते / न सन्ति न विद्यन्ते / काः ? कलाः कर्मक्षयोपशमजनिता व्यावहारिका द्विसप्ततिसंख्याकाः कलाः / अन्यान्यपि न सन्ति / तानि कानि कानि? षट् संस्थानम्-समचतुरस्राल्यं प्रथमं संस्थानम् 1, न्यग्रोधसंस्थानं द्वितीयं 2, स्वातिसंस्थानं तृतीयं 3, कुब्जकसंस्थानं चतुर्थ 4, वल्मीकसंस्थानं पञ्चमं 5, हुण्डकनामसंस्थानं षष्ठम् 6 / एवंविधानि षट्संस्थानानि तस्य न सन्ति / पुनश्च का न सन्ति ? 'मग्गण' मागंणाश्चतुर्दश / तथाहि गह इंदिए च काए जोऐ बेए कसायणाणे य / संजम बंसण लेस्सा भविया सम्मत्त सण्णि आहारे // 21 // गतयश्चतस्रो भवन्ति-नरकगति: 1, तिर्यग्गतिः 2, मनुष्यगतिः 3, देवगतिरिति / / नरकगतौ तु सप्ताघोऽधोभागेन भूमयो भवन्ति-रत्नप्रभा 1, शर्कराप्रभा 2, वालुकाप्रभा 3, पङ्कप्रभा 4. धमप्रभा 5, तमःप्रभा 6, महातमःप्रभा 7 इति सप्तस भूमिमध्ये एकोनपञ्चाशत पटलानि सन्ति / कथम् ? प्रथमायां भूमौ त्रयोदश पटलानि 13 / द्वितीयायां चैकादश 11, तृतीयायां नव पटलानि 9, चतुर्थ्यां सप्त 7, पञ्चम्यां पञ्च पटलानि 5, षष्ठयां भूमौ त्रीणि पटलानि 3, सप्तमभूमौ टोकार्थ-'णत्थि कला संठाणं' इत्यादि गाथाका भट्टारक श्री कमलकीति विशेष व्याख्यान करते हैं यहां पर 'उस निरंजन जीवके' इस पदका अध्याहार करना चाहिए। उस निरंजन आत्माके ज्ञानावरणादि कर्मोके क्षयोपशमसे उत्पन्न होनेवाली व्यावहारिक गीत-संगीत आदि बहत्तर कलाओं से कोई कला नहीं है / इसी प्रकार अन्य भी अनेक वस्तुएं नहीं हैं। प्रश्न-वे अन्य कौन कौन वस्तुएं नहीं हैं ? उत्तर-वे वस्तुएं इस प्रकार हैं-संस्थान (शरीरका आकार) छह प्रकारका होता है-१ समचतुरस्रसंस्थान, 2 न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान, 3 स्वातिसंस्थान, 4 कुब्जक संस्थान, 5 वल्मीकसंस्थान और 6 हुण्डकसंस्थान / इन छह प्रकारके संस्थानोंमेंसे उस निरंजन आत्माके कोई भी संस्थान नहीं है। प्रश्न-और उस निरंजन अत्माके क्या नहीं है ? उत्तर-चौदह मार्गणास्थान भी नहीं हैं / वे चौदह मार्गणास्थान इस प्रकार हैं 1 गतिमार्गणा, 2 इन्द्रियमार्गणा, 3 कायमार्गणा, 4 योगमार्गणा, 5 वेदमार्गणा, 6 कषायमार्गणा, 7 ज्ञानमार्गणा, 8 संयममार्गणा, 9 दर्शनमार्गणा, 10 लेश्यामार्गणा, 11 भव्यमार्गणः, 12 सम्यक्त्वमार्गणा, 13 संज्ञिमार्गणा और 14 आहार मार्गणा // 21 // गतियां चार होती हैं-१ नरकगति, 2 तिर्यग्गति, 3 मनुष्यगति और 4 देवगति / नरकगतिमें नीचे नीचे अधोभागमें सात भूमियां हैं-१ रत्नप्रभा, 2 शर्कर प्रभा, 3 वालुकाप्रभा, 4 पंकप्रभा, 5 धूमप्रभा, 6 तमःप्रभा और 7 महातमःप्रभा / इन सातों भूमियोंके मध्य भागमें उनचास (49) पटल हैं। वे इस प्रकार हैं-पहिली भूमिमें तेरह पटल हैं 13 / दूसरी भूमिमें ग्यारह पटल हैं 11 / तीसरी भूमिमें नौ पटल हैं 9 / चौथी भमिमें सात पटल हैं 7 / पांचवीं भूमिमें पांच पटल