________________ तत्वसार टीका-इत्यवतारिकां कृत्वा विशेषमाह-तद्यथा, 'णायव्यो एरिसो अप्पा' आसन्नभव्यैभेंदज्ञानिभिः ज्ञातव्यो भवति / कोऽसौ ? ह्यात्मा। कथम्भूतः? ईदृग्। कोहगिति 'दसण-णाणपहाणों' वर्शन-शानप्रधानः-केवलवर्शनं केवलज्ञानं च, ताभ्यां प्रधानो दर्शन-ज्ञानप्रधानः / पुनश्च कथम्भूतः ? 'असंखदेसो हु' असंख्यातप्रदेशः-लोकमात्रासंख्यातप्रदेशप्रमाणः / पुनरपि कथम्भूतः ? 'मुत्ति परिहीणो / मूत्तिस्तु म्पर्श-रस-गन्ध-वर्णवती मूत्तिः, तया मूर्त्या परि समन्तात् हीनः रहितः परिहीनः, निश्चयनयेन मूत्तिपरिहीनः। पुनश्च किं विशिष्टः ? 'सगहियदेहपमाणी' व्यवहारनयेन वर्तमानकाले स्वगृहीतदेहप्रमाणः, जघन्येनाङ्ग लासंख्यातभागप्रमाणः। उत्कृष्टेन स्वयम्भूरमणसमुद्रमध्ये योजनानां सहस्रकप्रमाणो देहो भवति / ततः पूर्वोपाजितनामकर्मोदयजनितशरीरप्रमाणोऽयमात्मेति ज्ञात्वा वस्तुतस्तत्त्वविदभिः / पुरुषैः सर्वकालमुपादेयबुद्धया ज्ञातव्योऽनुभवनीयश्च भवतीति भावार्थः // 17 // टीकार्थ-उक्त प्रकारसे गाथाका अवतरण करके अब उसका विशेष अर्थ कहते हैंयथा ‘णायव्वो एरिसो अप्पा' निकट भव्य भेदज्ञानी पुरुषोंको इस प्रकारका आत्मा जानना चाहिए। प्रश्न-वह आत्मा किस प्रकारका है ? उत्तर-'दंसण-णाणपहाणो' अर्थात् आत्मामें जो अनन्त गुण हैं, उनमें से केवल दर्शनरूप अनन्त दर्शन और केवल ज्ञानरूप अनन्तज्ञान, इन दो प्रधान गुणवाला है। प्रश्न-पुनः वह आत्मा कैसा है ? उत्तर-'असंखदेसो हु' अर्थात् लोकाकाशके समान असंख्यात प्रदेशप्रमाणवाला है। प्रश्न-फिर भी वह कैसा है ? उत्तर-'मुत्तिपरिहीणो' अर्थात् मूत्तिसे रहित है / जिसमें स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण पाये जावें, उसे मूर्ति कहते हैं। निश्चयनयसे वह आत्मा उक्त प्रकारकी मूत्तिसे सर्वथा रहित है। प्रश्न-फिर भी वह कैसी विशेषतासे युक्त है ? . उत्तर-'सगहियदेहपमाणो' अर्थात् व्यवहारनयसे वर्तमानकालमें अपने द्वारा गृहीत शरीर प्रमाण है जो कि सूक्ष्मनिगोदिया जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण देहवाला है और उत्कृष्टरूपसे स्वयम्भूरमण समुद्रके मध्यमें अवस्थित एक हजार योजनवाले महामत्स्यके देह-प्रमाण है / इसलिए वह संसारी जीवोंकी अपेक्षा पूर्वोपार्जित नामकर्मके उदयसे उत्पन्न शरीर-प्रमाण है। इस प्रकारसे वास्तविक तत्त्ववेत्ता पुरुषोंको अपने आत्माका स्वरूप जानकर सर्वकाल ही उपादेय बुद्धिसे आत्माका परिज्ञान और अनुभव करना चाहिए। यह इस गाथाका भावार्थ है // 17 //