________________ तत्वसार अथ कथमात्मा ध्यातव्यो भवतीति भगवानाहमूलगाथा-रागादिया विभावा बहिरंतर-उहय वियप्प मोत्तूणं / / एयग्गमणो झायउ णिरंजणं णियय-अप्पाणं // 18 // संस्कृतच्छाया-रागादिकान् विभावान् बाह्याभ्यन्तरान् उभयविकल्पान्मुक्त्वा / . एकाग्रमना ध्यायतु निरञ्जनं निजकात्मानम् // 18 // टीका-'रागादियेत्यादि-पदखण्डनारूपेण वृत्तिकर्ताऽचार्यश्रीकमलकोतिर्व्याख्यानं करोति / तथा च-'झायउ' ध्यायतु कश्चिदासन्नभव्यः। कम् ? 'णियय-अप्पाणं' निजकात्मानं स्वकीयमात्मानम् / कथम्भूतम् ? "णिरंजण' निरञ्जनं कर्माजनरहितम् / कथम्भूतः सन् ध्यायत? 'एयग्गमणो' एकाग्रमनाः सन् एकाग्रचित्तः, ऐकाम्यं साम्यं स्वास्थ्यं शुद्धोपयोग एकार्थवाचकाः, तस्मिन् मनश्चित्तं एकाग्रचित्त इत्युच्यते। किं कृत्वा ध्यायतु ? मुक्त्वा / कान् किमादिकान् ? 'रागादिया' रागादीन् राग आविर्येषां ते रागादयस्तान् राग-द्वेष-मोहावीन् / पुनश्च कथम्भूतान् ? 'विभावा' विभावान्, विरुद्धा भावा विभावास्तान् विभावान् विभावरूपान् / पुनश्च किविशिष्टान् ? आर्गे ध्यान करणेकी विधि कहैं हैं भा० व०-एकांग्र मनकरि निज आत्माकू ध्यायहू / कैसा है, निरंजन है, कर्म-कलंकरहित है / अर रागादिक जे विभाव भाव बाह्य अभ्यंतर तिनिकू छोड़ि करि आत्मध्यान करहू // 18 // अब भगवान् देवसेन बतलाते हैं कि कैसे आत्माका ध्यान करना चाहिए. अन्वयार्थ-(रागादिया विभावा) रागादि विभावोंको, तथा (बहिरंतर-उहवियप्प) बाहिरी और भीतरी दोनों प्रकारके विकल्पोंको (मोत्तूणं) छोड़कर और (एयग्गमणो) एकाग्र मन होकर (णिरंजणं) कर्मरूप अंजनसे रहित शुद्ध (णियय-अप्पाणं) अपने आत्माका (झायउ) ध्यान करना चाहिए। .. टीकार्य-रागादिया विभावा'इत्यादि गाथाका टीकाकार आचार्यश्रीकमलकीति अर्थव्याख्यान करते हैं-कोई आसन्नभव्यजीव 'झायउ णियय-अप्पाणं' अपने स्वकीय आत्माका ध्यान करे। .. प्रश्न-कैसे आत्माका ध्यान करे ? उत्तर-णिरंजणं' अर्थात् कर्मरूप अंजनसे रहित निरंजन शुद्ध आत्माका ध्यान करे। प्रश्न-कैसा होकर ध्यान करे ? ... उत्तर–'एयग्गमणो' अर्थात् एकाग्रमन होकर ध्यान करे। ऐकाग्र्य, साम्य, स्वास्थ्य और शुद्धोपयोग ये सब एकार्थवाचक नाम हैं। इस प्रकारके साम्यभावमें स्थित चित्तको एकाग्रचित्त कहते हैं। प्रश्न-क्या करके आत्माका ध्यान करे? . उत्तर-'रागादिया विभावा बहिरंतर-उहयवियप्प मोत्तूणं' राग है आदिमें जिनके ऐसे राग द्वेष और मोहादिको-जो आत्मस्वरूपसे विरुद्ध विभाव परिणाम हैं-उनको छोड़कर, तथा