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________________ तत्वसार समस्ता / कीदृशी सा? सम्यक्त्वादि पञ्चाणुव्रत-पञ्चमहाव्रत-धर्मध्यान-शुक्लध्यानपर्यन्ता सर्वा स्यात् / किमर्थम् ? मोक्षार्थम् / ए एव पूर्वोक्तो मोक्षस्तस्य हेतुः कारणं भवतीति ज्ञात्वा तज्ज्ञः पुरुषः कालाविलब्धि लब्ध्वा स्वोचितेषु कार्येषु सावधानभवितव्यम् / यतः सावधानमन्तरेण किमपि न लभ्यत इति भावार्थः // 12 // अथ लब्धासु सर्वासु सामग्रीष्वपि ध्यानेन विना कार्य न सिद्धयतीत्याहमूलगाथा-चलणरहिओ मणु स्सो जह वंछइ मेरुसिहरमारुहिउ / तह झाणेण विहीणो इच्छइ कम्मक्खयं साहू // 13 // संस्कृतच्छाया-चलनरहितो मनुष्यो यथा वाञ्छति मेरुशिखरमारोढुम् / तथा ध्यानेन विहीन इच्छति कर्मक्षयं साधुः // 13 // . टीका-'चलणरहिओ' इत्यादि पदखण्डनारूपेण व्याख्यानं करोति-'जह' यथा, 'मणुस्सो' कश्चिन्मनुष्यः, 'चलणरहियो' 'चलनौ पादौ ताभ्यां रहितो विकलः सन् 'वंछइ' वाञ्छति; आगें कहैं हैं ध्यान बिना मोक्ष नांही होय है भा० व०-जैसें चरण-रहित. मनुष्य है सो मेरुका शिखरकू चढ़नेकू वांछा कर है, तैसें ही ध्यान करि रहित साधू है सो कर्मको क्षय ताहि इच्छा करै है / भावार्थ-ध्यान बिना कर्मका / क्षय नाही होय हैं; अर कर्म-क्षय बिना मोक्ष नाही होय है // 13 // प्रश्न-वह सुसामग्री कौनसी और किस प्रकारकी है ? उत्तर-आदिमें सम्यक्त्व, पुनः पंच अणुव्रत, पुनः पंच महाव्रत, पुनः धर्मध्यान और अन्तमें शुक्लध्यानकी प्राप्ति होना यह सुसर्व सामग्री है। प्रश्न-किसलिए इस सुसर्व सामग्रीकी आवश्यकता है ? उत्तर-मोक्ष-प्राप्तिके लिए इस उत्तम सर्व सामग्रीको आवश्यकता है / . इस प्रकारसे मोक्षकी कारणभूत इस सर्व सामग्रीको जानकर ज्ञानी पुरुषोंको कालादिलब्धि पाकर अपने योग्य अर्थात् अपनी शक्ति और परिस्थितिके अनुकूल उक्त उचित कार्योंमें सावधान होना चाहिए, क्योंकि सावधान हुए बिना कुछ भी प्राप्त नहीं होता है, यह इस गाथाका भावार्थ है // 12 // ___ अब आचार्य कहते हैं कि उक्त सर्व सामग्री प्राप्त होनेपर भी ध्यानके बिना कर्म-क्षयरूप कार्य सिद्ध नहीं होता है अन्वयार्थ-(जह) जैसे (चलण-रहिओ) पाद-रहित (मणुस्सो) मनुष्य (मेरु-सिहर) सुमेरु पर्वतके शिखरपर (आरुहिउं) चढ़नेके लिए (वंछइ) इच्छा करे, (तह) वैसे ही (झाणेण) ध्यानसे (विहीणो) रहित (साहू) साधु (कम्मक्खयं) कर्मोंका क्षय (इच्छइ) करना चाहता है। टीकार्थ—'चलणरहिओ' इत्यादि गाथाका टीकाकार अर्थ-व्याख्यान करते हैं जैसे दोनों पैरोंसे रहित कोई मनुष्य मेरु पर्वतके शिखरपर चढ़नेकी इच्छा करता है, तो उसकी वह इच्छा
SR No.004346
Book TitleTattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Siddhantshastri
PublisherSatshrut Seva Sadhna Kendra
Publication Year1981
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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