________________ तत्वसार अथानु कथं ध्यानसमर्थो भवतीति पृष्टे सति भगवानाहमूलगाथा-कालाइलद्धि णियडा जह जह संभवइ भन्वपुरिसस्स / तह तह जायइ णूणं सुसव्वसामग्गि मोक्खट्ठ // 12 // संस्कृतच्छाया-कालादिलब्धिः निकटा यथा यथा संभवति भव्यपुरुषस्य / तथा तथा जायते नूनं सुसर्वा सामग्री मोक्षार्थम् // 12 // टीका-इत्यवतारिकानन्तरमाचार्यश्रीकमलकोतिराह-'कालाइलद्धि' संसारासन्नतारूपसामान्यकालः, विशेषेण तु मिथ्यात्व-सम्यकप्रकृति-सम्यग्मिध्यात्स्वानन्तानुबन्धिक्रोध-मान-मायालोभानां सप्तानां प्रकृतीनामुपशमरूपो विशेषकालः। आदिशब्देन पञ्चेन्द्रियः संज्ञी पर्याप्तः प्राप्तार्यक्षेत्र-भावशुद्धि-सद्-गुरूपदेशादिः / एवं काल आदिर्यस्यां सा कालादिः, कालादिश्चासौ लब्धिश्चकालादिलब्धिः 'णियडा' निकटासमीपा आसन्ना 'जह जह संभवइ भव्वपुरिसस्स' यथा यथा येन येन प्रकारेण यथा यथा संभवति घटते सम्पद्यते / कस्य? भव्यपुरिसस्स / पूर्वोक्तो भव्यश्चासौ पुरुषश्च भव्यपरुषः तस्य भव्यपुरुषस्य। 'तह तह जायड णणं ससव्वसामग्गि मोक्खट' तथा तथा जायते उत्पद्यते नूनं निश्चयेन, भ्रान्तेरभावात् / काऽसौ ? सामग्री। कियती? सुसर्वा सुष्ठु अतिशयेन * भा० व०-भव्य पुरुषकै कालादिलब्धि संसार-निकटारूप सामान्य काल है। अर विशेषपणाकरि मिथ्यात्व सम्यग्मिथ्यात्व सम्यक् प्रकृतिमिथ्यात्व अनन्तानुबन्धी क्रोध मान माया लोभ सप्त प्रकृतिनिका उपशम तो विशेषकाल आदि शब्द करि पंचेन्द्रिय सैनी पर्याप्त, अर प्राप्त भया आर्यक्षेत्र भावशुद्धि सद्-गुरु उपदेशादिक इत्यादिक तो काललब्धि जाननां / सो कालादि लब्धि जैसे जैसे निकट होय है, तैसें तैसें मोक्षके अथि सुन्दर सर्व सामग्री निश्चयतें होय है // 12 // 'अथानन्तर भव्य पुरुष ध्यान करने में समर्थ कैसे होता है ? ऐसा पूछनेपर भगवान् देवसेन कहते हैं ___अन्वयार्थ-(जह जह) जैसे जैसे (भव्वपुरिसस्स) भव्य पुरुषकी (कालाइलद्धि) काल आदि लब्धियां (णियडा) निकट (संभवइ) आती जाती हैं, (तह तह) वैसे वैसे ही (णूणं) निश्चयसे (मोक्खट्ठ) मोक्षके लिए (सुसव्वसामग्गि) उत्तम सर्व सामग्री (जायइ) प्राप्त हो जाती है। टीकार्थ-इस गाथाका उक्त अवतरण करनेके पश्चात् टीकाकार आचार्य श्री कमलकीर्ति इसकी व्याख्या करते हुए कहते है-'कालाइलद्धि इत्यादि, काललब्धि अर्थात् संसारकी निकटतारूप सामान्य कालकी प्राप्ति, और विशेषरूपसे मिथ्यात्व, सम्यक् प्रकृति, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी क्रोध मान माया लोभ, इन सात प्रकृतियोंके उपशमरूप विशेषकालकी प्राप्ति / आदि शब्दसे पंचेन्द्रियपना, संज्ञिपना, पर्याप्तकता, आर्य क्षेत्रकी प्राप्ति, भाव-विशुद्धि, और सद्गुरुका उपदेश आदिकी प्राप्ति / इस प्रकार काल है आदिमें जिनके ऐसी काल आदि लब्धियां 'जह जह संभवइ भव्वपुरिसस्स' भव्य पुरुषके जैसे-जैसे जिस जिस प्रकारसे संभव, घटित या प्राप्त होती जाती हैं, उस भव्य पुरुषके 'तह तह जाइय णूणं सुसव्वसामग्गि मोक्खटुं' उस उस प्रकार निश्चयसे सुसर्व सामग्री प्राप्त होती जाती है, इसमें कोई भ्रान्ति या सन्देह नहीं है। प्रश्न-सुसर्व सामग्रीका क्या अभिप्राय है? , उत्तर–सु अर्थात् अतिशय-युक्त सुन्दर श्रेष्ठ समस्त सामग्रीका अभिप्राय है /