________________ 12 तत्त्वसार पा-विषमन्तरङ्ग तपः। तथाहि-अनावमानभावेनोपाजितपापकर्मणां शोषनं जिनोक्तयुक्त्या यतिकायते तत् प्रायश्चित्ताल्यमान्तरं प्रथमं तपः१। सम्यग्दर्शनविनय-सम्यग्ज्ञानविनयसम्यक्चारित्रविनय-तदाराषकपुरुषोपचारविनयभेदेन चतुर्विषं विनयाल्यमान्तरम् द्वितीयं तपः 2 / आचार्योपाध्यायतपस्विशैक्यग्लानगणकुलसंघसाघुमनोज्ञानां वात्सल्यभेदेन दशविधं तृतीयमान्तरं वात्सल्याल्यं तपः३। वाचनापृच्छनानुप्रेक्षाऽऽस्नायधर्मोपदेशादिविकल्पात्पञ्चप्रकारं स्वाध्याय- . नामधेयमान्तरं चतुर्थ तपः 4 / बाह्याभ्यन्तरशरीर-रागद्वेषादित्यजनं पञ्चममान्तरं व्युत्सर्गाल्यं तपः५। पदस्थ-पिण्डस्थ-रूपस्थ-रूपातीत-भेदेन धर्मध्यान पृथक्त्ववितर्कवीचार-एकत्ववितर्कावोचार-सूक्ष्मक्रिया-प्रतिपाति-व्युपरतक्रियानिवृत्तीनीत्यादिशुक्लध्यानमितिभेदेनान्तरं षष्ठं ध्यानाल्यं तपः 6 / इति बाह्याभ्यन्तरद्वावशघातपोभेदेन द्वादशविधस्तपोधर्मः स्यात् 12 / / त्रयोदशषा चारित्रम् / तत्र पञ्चमहावतानि पूर्वोक्तानि / समितयः पश्च / तद्यथा-सूर्योदयास्तमनयोर्मध्ये मार्गे प्रतिते युगं प्रमाणं निरोक्ष्य गम्यते यत्र देववन्दनानिमित्तं गुरूणां वा. पादप नमस्कतुं सा ईर्यासमितिः 1 / दृष्टश्रुतानुभूतप्रत्यक्षेण धर्मोपदेशनिमित्तं कथ्यते यत्र सां भाषासमितिः 2 / जिनोक्तपिण्डसुखचा निरीक्य भुक्ते यत्र सा एषणासमितिः 3 / ज्ञानसंयमोपकरणानि पुस्तक-कुण्डिकादीनि दृष्टया प्रतिलेख्य गृह्यते निक्षिप्यते वा. यस्मिन् सा आदान अन्तरंग तप भी छह प्रकारका है-अनादिकालिक अज्ञानभावसे उपाजित पापकर्मोंका शोधन जिन-प्ररूपित योग्य विधिसे जो किया जाता है, वह प्रायश्चित्त नामका पहिला अन्तरंग तप है 1 / सम्यग्दर्शनकी विनय, सम्यग्ज्ञानकी विनय, सम्यक्चारित्रकी विनय, और रत्नत्रयके. आराधक पुरुषोंकी विनयरूप उपचार विनयके भेदसे चार प्रकारका विनय नामक दूसरा अन्तरंग तप है 2 / आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, शैत्य, ग्लान, गण, कुल, संघ, साधु और मनोज्ञ मुनियोंकी वात्सल्य (या वैयावृत्त्य) के भेदसे वात्सल्य (या वैयावृत्त्य) नामका तीसरा अन्तरंगतप है 3 / वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा, आम्नाय और धर्मोपदेश आदिके भेदसे पांच प्रकारका स्वाध्याय नामक चौथा अन्तरंगतप है 4 / बाह्यमें शरीरसे ममत्वका त्याग करना और अन्तरंगमें राग-द्वेषादि भावोंका त्याग करना व्युत्सर्ग नामका पांचवां अन्तरंग तप है 5 / पदस्थ, पिण्डस्थ, रूपस्थ और रूपातीतके भेदसे चार प्रकारका धर्मध्यान करना. तथा पथक्त्ववितर्क वीचार, एकत्व वितर्कअवीचार, सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति और व्युपरतक्रियानिवृत्ति इन चार प्रकारका शुक्लध्यान करना, इस प्रकार धर्मध्यान शुक्लध्यानरूप छठा ध्याननामका अन्तरंग तप है 6 / - इस प्रकार बाह्य-आभ्यन्तररूप बारह प्रकारके तपोंके भेदसे तपोधर्म बारह प्रकारका है 12 / चारित्र रूप धर्म तेरह प्रकारका है। उनमेंसे पांच महाव्रत पूर्वमें कहे गये हैं। पांच समितियां इस प्रकार हैं-सूर्योदयके पश्चात् और सूर्यास्तके पूर्व मध्यवर्ती कालमें मार्गके जनसंचार युक्त होनेपर देववन्दनाके निमित्त या गुरुजनोंके चरण-कमलोंको नमस्कार करनेके लिए युगप्रमाण (चार हाथ) भूमिको (नासादृष्टिसे) देखते हुए गमन करना पहिली ईर्यासमिति है 1 / दृष्ट, श्रुत, अनुभूत और प्रत्यक्षसे धर्मोपदेशके निमित्त हित, मित, प्रिय वचन बोलना दूसरी भाषासमिति है 2 / जिनभाषित पिण्डशुद्धि-पूर्वक अन्न-पानको भलीभांतिसे देखकर भोजन-पान करना तीसरी एषणासमिति है 3 / ज्ञान और संयमके उपकरण पुस्तक, कमण्डलु आदिको आंखसे भलीभांति