________________ तत्त्वसार चतुर्विधः धर्मः / आहारौषषशास्त्राभयदानविधिनापि चतुर्विधो धर्मः / हिंसाऽनृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेन्यो विरतिव्रतमित्यादिपश्चाणुव्रत-पञ्चमहाव्रतरूपेण वा पञ्चप्रकारः। षड्जीवनिकायरक्षालक्षणः षड्विधः, . .. 'देवपूजा गुरूपास्तिः स्वाध्यायः संयमस्तपः। दानं चेति गृहस्थानां षट् कर्माणि दिने दिने // इत्यादि षट्प्रकारश्च भवति / 'धूत-मांस-सुरा-वेश्या-पापद्धि-चौर्य-परदारादिसप्तव्यसनपरित्यागरूपः सप्तविषो धर्मः। जाति-कुलेश्वर्य-रूप-ज्ञान-तपोबल-शिल्पमदाष्टकत्यजनादेवाष्टधा स्यात् / मानुषी-तैरश्ची-देवीषु स्त्रीपर्यायेषु मनोवचनकाय-कृतकारितानुमताब्रह्मनवविधपरित्यागमूलो नवविधो धर्मः। उत्तमक्षमा. मार्दवाजव-सत्य-शौच संयम-तपस्त्यागाकिञ्चन्यब्रह्मचर्यदशप्रकारधर्मप्रतिपालनात् दशप्रकारो धर्मो भवति / एकेन्द्रिय-द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय-पञ्चेन्द्रिय (जीव-) रक्षा-रूपः पञ्चेन्द्रिय-विषयनिवृत्तिलक्षणोऽपि वा दशविधः / दर्शन-व्रत-सामायिक-प्रोषध-सचित्तपरित्याग-रात्रिभक्तब्रह्मचर्यारम्भत्यापपरिग्रहत्यागानुमत-रहितानुद्दिष्टाहारस्वभावैकादशगुणप्रतिपालनात् एकादशप्रकारोऽस्ति / तद्यथा-तत्रादौ सम्यग्दर्शनं विवृणोमि–क्षयोपशम-विशुद्धता-देशना-प्रायोग्य-करणलब्धिमोक्ष इन चार पुरुषार्थों की अपेक्षासे वह चार प्रकारका है। अथवा प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोगके भेदसे धर्म चार प्रकारका है / अथवा आहार, औषध, शास्त्र और अभयदानके भेदसे चार प्रकारका है। हिंसा, असत्य, स्तेय (चोरी), अब्रह्म (कुशील) और परिग्रह इन पंच पापोंसे एक देश विरतिरूप पांच अणुव्रतोंकी अपेक्षा, अथवा सर्वदेशविरतिरूप : पंच महाव्रतोंकी अपेक्षा वह धर्म पांच प्रकारका है। पृथिवीकाय, जलकाय, अग्निकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और त्रसकाय इन छह प्रकारके जीव-निकायकी रक्षारूपसे छह प्रकारका धर्म है। अथवा-देवपूजा, गुरूपास्ति, स्वाध्याय, संयम, तप और दान ये गृहस्थोंके प्रतिदिन षट् कर्त्तव्य कहे गये हैं, उनकी अपेक्षासे वह धर्म छह प्रकारका है। (अथवा-सामायिक, वन्दना, स्तवन, प्रतिक्रमण, आलोचन और कायोत्सर्ग, मुनियोंके इन छह आवश्यकोंकी अपेक्षा धर्म छह प्रकारका है) यह इत्यादि पदसे सूचित किया गया अर्थ है।। द्यूत (जुआ), मांस, सुरा (मदिरा), वेश्या, पापद्धि (शिकार) चोरी, और पर-दारागमन आदि सप्त व्यसनोंके परित्यागरूपसे सात प्रकारका धर्म है। जाति, कुल, ऐश्वर्य, रूप, ज्ञान, तप, बल और शिल्प, इन अष्ट मदोंके त्यागरूपसे धर्म आठ प्रकारका है। मानुषी, तिर्यचिनी, देवीरूप स्त्री पर्यायोंमें मन वचन काय द्वारा कृत, कारित और अनुमोदनारूप नौ प्रकारके अब्रह्मत्यागरूपसे नौ प्रकारका धर्म कहा गया है। उत्तमक्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्थ इन दश प्रकारोंके धर्मोंको पालन करनेसे धर्म दश प्रकारका है। अथवा-एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, इन पाँच प्रकारके जीवोंकी रक्षा करनेसे, तथा पांच इन्द्रियोंके विषयोंका त्याग करनेसे दश प्रकारका कहा गया है। दर्शन, व्रत, सामायिक, प्रोषध, सचित्त-परित्याग, रात्रिभक्त, ब्रह्मचर्य, आरम्भत्याग, परिग्रहत्याग, अनुमतित्याग और अनुद्दिष्ट आहारस्वरूप ग्यारह गुणों (प्रतिमाओं)के परिपालनसे वह धर्म ग्यारह प्रकारका है। उनमेंसे आदिमें दर्शन प्रतिमावालेको जिस सम्यग्दर्शनका धारण करना आवश्यक है,