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________________ श्री देवसेनाचार्य-विरचित तत्त्वसार (श्री कमलकीर्ति-रचित वृत्ति-संयुक्त) मङ्गलाचरणम् यज्ञानं विश्वभावार्थदीपकं संशयाविहृत् / तं वन्दे तत्त्वसारखं देवं सर्वविदांवरम् // 1 // सर्वविद्-हिमवद्-वक्त्र-सरोरुह-विनिर्गता। वाग्गङ्गा हि भवत्वेषा मे मनोमल-हारिणी // 2 // गुरूणां पादपत्रं च मुक्तिलक्ष्मी-निकेतनम् / मे हृत्सरसि सानन्दं क्रीडतामन्तरायहत // 3 // पुनः श्रीगौतमादीनां स्मृत्वा चरणपङ्कजम् / वक्ष्ये श्रीतत्त्वसारस्य वृत्ति संक्षेपतो मुदा // 4 // भाषा वचनिकाकारका मंगलाचरण दोहा प्रणमि श्री अरहंतकू सिद्धनिकू शिर नाय / आचार्य उवाय मुनीनिकू पूजू मन वच काय // 1 // गौतम गुरुकू वंदि करि वंदि जिनोक्त सुवाणि / तत्त्वसारकी देशना करूं वचनिका जाणि // 2 // जिनका ज्ञान समस्त तत्त्वार्थोंको प्रकाशित करनेके लिए दीपकरूप है, संशय, विभ्रम, विमोहका नाशक है, जो तत्त्वोंके सारके ज्ञायक हैं, और सर्वतत्त्ववेत्ताओंमें श्रेष्ठ हैं ऐसे उन सर्वज्ञदेवकी मैं टीकाकार कमलकीत्ति वन्दना करता हूँ // 1 // ... सर्वज्ञरूप हिमवान् पर्वतके मुख-कमलसे निकली हुई यह वचन-गंगा मेरे मनके मलको दूर करनेवाली होवे // 2 // गुरुजनोंके चरण-कमल मुक्ति-लक्ष्मीके निकेतन (ध्वजारूप या गृहस्वरूप) हैं और प्रारब्ध कार्यमें आनेवाले विघ्नोंके विनाशक हैं, वे चरण-कमल मेरे हृदय-सरोवरमें नित्य क्रीडा करें // 3 // पुनः श्रीगौतम आदि गणधरोंके चरण-कमलोंका स्मरण कर मैं हर्ष-पूर्वक श्रीतत्त्वसारकी वृत्तिको संक्षेपसे कहूँगा // 4 //
SR No.004346
Book TitleTattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Siddhantshastri
PublisherSatshrut Seva Sadhna Kendra
Publication Year1981
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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