________________ 32 तत्वसार 106 108 113 115 116 117 118 119 120 122 123 125 126 .127 परमाणुमात्र भी रागको मनमें रखनेवाला शास्त्रज्ञ पुरुष भी कर्मोसे मुक्त नहीं होता है सुख-दुःखमें समभावी पुरुषका तप कर्म-निर्जराका हेतु है - छह बाहिरी तपोंका स्वरूप-निरूपण छह भीतरी तपोंका स्वरूप-निरूपण निश्चय संवर और निर्जराका स्वरूप-वर्णन निश्चय रत्नत्रयका स्वरूप-वर्णन निश्चयनयका आश्रय लेनेवाला पुरुष ही ज्ञानादि गुणोंसे युक्त होता है राग-द्वेषका अभाव होनेपर ही योगियोंके परमानन्द प्रकट होता है . जिस योगसे परमानन्द प्रकट न हो, उससे क्या लाभ ? रंचमात्र भी चंचल चित्त योगीके परमानन्द प्रकट नहीं होता है सर्व विकल्पोंका अभाव होनेपर ही मोक्षका कारणभूत शुद्ध आत्म-स्वभाव प्रकट होता है। आत्मस्वभावमें स्थित योगी ही अपने शुद्धस्वरूपका दर्शन करता है शुद्धोपयोगीका मन इन्द्रिय-विषयोंमें नहीं रमता है। जब तक मोहका क्षय नहीं होता, तब तक मन नहीं मरता है। मोहके नष्ट होनेपर शेष घातिया कर्म स्वयं ही नष्ट हो जाते हैं घातिया कर्मोंके क्षय होनेपर केवलज्ञान प्रकट होता है - छठा पर्व अघातिया कर्मोका क्षय होनेपर जीव सिद्ध परमात्मा हो जाता है सिद्ध परमात्माका स्वरूप सिद्ध परमात्मा सर्वद्रव्योंके अनन्तगुण-पर्यायोंको देखते जानते हैं सिद्ध परमात्मा सिद्धालयमें कितने कालतक रहते हैं मुक्त जीवके स्वरूपका विशेष व्याख्यान आचार्य द्वारा सिद्धोंको नमस्कार तत्त्वसारके कर्ता श्रीदेवसेनका फलप्राप्तिपूर्वक आशीर्वाद तत्त्वसारकी भावनाका फल टीकाकारकी प्रार्थना ग्रन्थके टीकाकारको प्रशस्ति पंडितप्रवर द्यानतरायकृत पद्यानुवाद परिशिष्ट : गाथानुक्रमणिका संस्कृतटीकागत अवतरण गाथादि अनुक्रमणिका टीकागत ग्रन्थनाम-सूची टीकाकार-रचित श्लोकसूची टोकागत विशिष्टनाम-सूची / तत्त्वसारका गुजराती-भाषानुवाद 129 130 131 133 134 135 138 140 141 149 151 152 152 152