________________ विषय-सूची तीसरा पर्व व्यवहारनयसे जीवके कर्म-नोकर्मादि पर्यायोंका कथन दृष्टान्त-पूर्वक जीव और कर्मके संयोगका कथन ध्यान द्वारा जीव-कर्मके भेद करनेका निरूपण जीव-कर्मका भेद कर अपनी शुद्ध आत्माके ग्रहण करनेकी प्रेरणा अपनी शुद्ध आत्मा कहाँ रहती है ? इस शंकाका समाधान शुद्धनयसे शुद्ध आत्म-स्वरूपका वर्णन पुनः शुद्ध आत्मस्वरूपका निरूपण स्व-ध्यानसे आत्माके क्या प्रकट होता है, इस शंकाका समाधान दृष्टान्त द्वारा ध्यानके माहात्म्यका निरूपण मन वचन कायके निर्विकार होनेपर परमात्मस्वरूप प्रकट होता है ध्यानके माहात्म्यका निरूपण चौथा पर्व परद्रव्यमें आसक्त चित्त भव्य पुरुष उग्र तप करते हुए भी मोक्षको नहीं पाता . परसमयमें रत रहनेके फलका वर्णन अज्ञानी और ज्ञानीका स्वरूप स्वसमय-रत ज्ञानी पुरुषकी मध्यस्थवत्तिका वर्णन ज्ञानीकी मध्यस्थताका विशेष निरूपण निश्चयनयसे सर्वजीवोंकी समानताका निरूपण स्व-परके भेदज्ञानका फल निश्चल चित्तवाले ज्ञानी पुरुषके माहात्म्यका वर्णन दृष्टान्त द्वारा उक्त ज्ञानी पुरुषकी महत्ताका वर्णन आत्मतत्त्वके दर्शन होनेपर आधे क्षणमें अल्पज्ञ पुरुष सर्वज्ञ बन जाता है सभी परभावोंको छोड़कर अपने शुद्धस्वभावकी भावना करनेकी प्रेरणा . शुद्ध आत्माके ध्यान करनेका फल-वर्णन निश्चय रत्नत्रयका स्वरूप-वर्णन पाँचवाँ पर्व बाहिरी ध्यानको करनेवाला भी मनुष्य भावश्रुतके विना आत्माको नहीं जान सकता शारीरिक सुखमें आसक्त ध्यानी पुरुष भी शुद्ध आत्माको प्राप्त नहीं कर सकता बहिरात्माका स्वरूप आत्म-ध्यानी पुरुष ही पांचों शरीरसे मुक्त होता है ज्ञानी पुरुष उदयमें आये कर्मका लाभ ही देखता है उदयागत कर्मको शान्तिसे भोगनेवाले पुरुषके ही कर्मोंका संवर और निर्जरा होती है। उदयागत कर्मोके फलमें शुभ-अशुभ भाव करनेवाला मनुष्य और भी अधिक कर्मोंका बन्ध ..' करता है 103 104 105