________________ तत्त्वसार भाषा थावर जंगम मित्र रिपु, देलै आप समान / राग विरोध कर नहीं, सोई समतावान // 37 // सब असंखपरदेसजुत, जनमै मरे न कोय / गुणअनंत चेतनमई, दिव्यदृष्टि धरि जोय // 38 // निहचे रूप अमेद है, मेदरूप ब्योहार / स्यादवाद मान सदा, तजि रागादि विकार // 39 // राग दोष कल्लोलबिन, जो मन जल थिर होय / सो देखै निजरूपकौं, और न देखे कोय // 40 // अमल सुथिर सरवर भय, दीसै रतनभण्डार / त्यौं मन निरमल थिरविः, दीसै चेतन सार // 41 // देखौं विमलसरूपकौं, इन्द्रियविषै विसार / . होय मुकति खिन आधमैं, तजि नरभौ अवतार // 42 // ग्यानरूप निज आतमा, जड़सरूप पर मान / जड़तजि चेतन ध्याइय, सुद्धभाव सुखदान // 43 / / निरमल रत्नत्रय धरै, सहित . भाव वैराग। चेतन लखि अनुभौ करें, वीतरागपद जाग // 44 // देखै जानै अनुसरै, आपविर्षे जब आप / . निरमल रत्नत्रय तहां जहां न पुन्य न पाप // 45 // थिर समाधि वैरागजुत, होय न ध्यावै आप / भागहीन कैसे करै, रतन विसुद्ध मिलाप // 46 // विषयसुखनमैं मगन जो, लहै न सुद्ध विचार / ध्यानवान विषयनि तजै लहै तत्त्व अविकार // 47 // अथिर अचेतन जड़मई, देह महादुखदान / जो यासौं ममता करै, सो बहिरातम जान // 48 // सरै परै ओमय धरै, जरै मरै तन एह। / हरि ममता समता करै, सो न बरै पन-देह // 49 // पापउदैकी साधि, तप, करै विविध परकार / सो आवै जो सहज ही, बड़ी लाम है सार // 50 // 1. पर अर्थात् शरीरादि पुद्गल / 2. रोग। ....